जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। लालू यादव के छोटे भाई नीतीश कुमार। और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुगामी नीतीश कुमार। नरेंद्र मोदी ने कहा था- गंगा मइया ने बुलाया है। नीतीश कुमार कह रहे हैं- हम भी हैं गंगा किनारे वाले।
वीरेंद्र यादव
नीतीश अपने मेकओवर के लिए बेचैन है। बेचैनी का कारण वे खुद नहीं बताते हैं। उनके सहयोगी कहते हैं- नीतीश पीएम मैटेरियल हैं। बड़ा भाई आशीर्वाद भी ‘ओडि़या’ (दौरी) से देते हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नीतीश राष्ट्रीय छवि भी गढ़ना चाहते हैं। केरल, धनबाद, बनारस से लखनऊ तक। दिल्ली में भी दूसरे प्रदेशों के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। शराबबंदी को अपना अमोघ अस्त्र मानते हैं। इसी के नाम पर अपनी आगे की राजनीति करना चाहते हैं।
बेकाबू अपराध
लेकिन सवाल यह है कि उनके बड़े सपने में बिहार कहां है। गया से सीवान तक नृशंस हत्या। महागठबंधन के दर्जन भर विधायक व विधान पार्षद विभिन्न आपराधिक मामलों में आरोपित। नीतीश देश भर में ‘शराबबंदी का राग’ अलापने का दावा करते हैं और बिहार में अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर पांडेय द्वारा प्रशासनिक मामलों पर नियंत्रण रखने के लिए बिहार विकास मिशन का गठन किया गया। लेकिन पीकेपी ‘विकास का जुआठ’ अपने कंधों पर रखने को तैयार नहीं हैं। वे अब राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं।
भरोसे का संकट
बिहार न नीतीश कुमार की प्राथमिकता है और न प्रशांत किशोर की। बिहार के हालात हर दिन खराब होते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने वरीय पुलिस पदाधिकारियों की बैठक में खुद ही स्वीकार किया कि पुलिस महकमा पर से लोगों का भरोसा उठ रहा है। इसे बहाल करने की जरूरत है। अपराध की बढ़ती घटनाएं और बेकाबू होते हालात की आंच में नीतीश कुमार का ‘सपना’ स्वाहा होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। नीतीश कुमार को बिहार की चिंता भले नहीं हो, लेकिन अपने सपने को साकार करने की चिंता जरूर होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि बिहार के लोगों का सरकार, प्रशासन और पुलिस पर भरोसा कायम रहे और आज उसी भरोसे का संकट है।