यह विख्यात कहावत है कि बड़े लोग गलतियां कम करते हैं लेकिन करते हैं तो बड़ी गलतियां करते हैं. अगर नीतीश मांझी को हटा कर मुख्यमंत्री बनते हैं तो यह सर्वनाशी फैसला होगा, जो वह नहीं कर सकते.
इर्शादुल हक,सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
क्योंकि नीतीश अपने राजनीतिक जीवन के दो आत्मघाती फैसले पहले ही कर चुके हैं और उसका खामयाजा भी भुगत चुके हैं. उन्होंने पहली राजनीतिक गलती भारतीय जनता पार्टी के एनडीए गठबंदन से अलग होने की, की.
हालांकि वह एनडीए से अलग होने के पीछे भले ही जो भी तर्क दें और कहें कि मोदी को पीएम बना कर देश में कम्युनिल शक्तियों को बढ़ावा देना वह स्वीकार नहीं कर सके, इसलिए अलग हो गये. यह खालिस राजनीतिक बयान है. क्योंकि गुजरात दंगों के बाद जब वह केंद्र में मंत्री रहे तब तो उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. उन्होंने दूसरी आत्मघाती भूल तब की जब आवेश उन पर हावी हो गया और वह हार स्वीकार करते ही मांझी को मुख्यमंत्री बना बैठे.
पहले भी की दो आत्मघाती भूल
ऐसे में नीतीश कुमार से अब तीसरी हिमालयायी भूल नहीं होगी, ऐसा माना जाना चाहिए. भले ही नीतीश के सलाहकार जो माहौल बना लें, नीतीश की परिपक्वता पर अगर भरोसा किया जाये तो ऐसा कहीं से नहीं लगता कि वह जीतन राम मांझी को हटा कर खुद मुख्य मंत्री बनना चाहेंगे. ऐसे में वह किसी और दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाने की बात सोच सकते हैं. लेकिन अब भी ऐसा सोचने वाले नेताओं की कमी नहीं जो इस बात के लिए अडिग हैं कि मांझी मुख्यमंत्री बने रहेंगे. इनमें वृशिण पटेल, महाचंद्र प्रसाद सिंह और शकुनी चौदरी सरीखे नेता शामिल हैं.
दूसरी तरफ अनेक वरिष्ठ नेताओं , जिनमें रघुवंश प्रसाद सरीखे अनुभवी नेता हैं, ने साफ कह दिया है कि मांझी को चुनाव से पहले पद से हटाना जद यू और उसके सहयोगी दलों के लिए सर्वनाशी और भाजपा के लिए मददगार साबित होगा.
कुछ ऐसी ही बातें राजनीतिक विश्लेषक सत्य नारायण मदन करते हैं. मदन का कहना है कि नीतीश और मांझी का यह पावर सट्रगल बिहार की राजनीतिक के खतरनाक है जिसका पूरा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा. मदन कहते हैं कि मांझी के अलावा जद यू नीतीश कुमार, रमई राम या भले ही श्याम रजक को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करे इसका कोई लाभ उसे नहीं होने वाला. मदन यहां तक कहते हैं कि जद यू के हित में यही है कि वह मांझी को मुख्यमंत्री बनाये रखे.
संकट काल
जहां तक जीतन राम मांझी के नेतृत्व का सवाल है, इससे जद यू को अभूतपूर्व लाभ पहुंच चुका है. जिस तरह से मांझी के नेतृत्व में दलित समाज में एकजुटता आयी है, उसका आखिरकार लाभ जद यू को ही मिलेगा, बशर्ते कि मांझी और नीतीश के बीच पारस्परिक विश्वास की भावना बची रहे. लेकिन अब जिस तरह के हालात, कुछ खास मानसिकता के जद यू नेताओं ने बना दी है तो अब ऐसा लगने लगा है कि वे नीतीश और मांझी के बीच अविश्वास की गहराई को और भी गहरा बनाते जा रहे हैं.
पिछले तीन दिनों से शतरंज की बिसात पर खुद जद यू के अंदर जिस तरह से चाल चली जा रही हैं यह संगठन के लिए अपूर्णीय क्षति की तरह होता जा रहा है. यह संकल का दौर है जद यू के लिए. इन सबके बावजूद अब भी बहुत संभावना बची है कि जद यू का यह आंतिरक विवाद खत्म हो जायेगा और मांझी मुख्यमंत्री बने रहेंगे.
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