बिहार में कभी Editor-in-Chief  के नाम से चर्चित रहे नीतीश ने सीएम जीतनराम मांझी और भाजपा से मुकाबले के मीडिया का मोर्चा खुद संभाल लिया है। पार्टी प्रवक्‍ताओं की ‘मुंहजबरी’ तर्कों से पार्टी की साख बचती नहीं दिख रही थी। उनके तर्क भी समझ में नहीं आ रहे थे। जबकि भाजपा की ‘वेल मीडिया मैनेजमेंट’ और सधे हुए तर्कों के आगे जदयू का खेमा कमजोर पड़ रहा था।unnamed (8)

वीरेंद्र यादव

 

प्रदेश अध्‍यक्ष वशिष्‍ठ नारायण सिंह और विजय चौधरी भी भाजपा पर हमला नहीं कर पा रहे थे। यह नीतीश कुमार को असहज लग रहा था। फिर राष्‍ट्रीय मीडिया में अखबारी बयानों से अलग गंभीर विमर्श पर चर्चा के लिए जदयू के पास कोई नेता भी नजर नहीं आ रहा था। वैसी स्थिति में नीतीश कुमार ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। राज्‍यपाल के साथ विवाद बढ़ने के बाद उनकी सक्रियता ज्‍यादा बढ़ गयी। अपनी राष्‍ट्रपति भवन यात्रा के दौरान नीतीश मीडिया को लेकर ज्‍यादा सचेत, आक्रमण और तार्किक हो गए।

 

नीतीश की मीडिया स्‍ट्रेजी को देखें तो वह फेसबुक से लेकर प्रेस विज्ञप्ति तक को लेकर गंभीर हो गए हैं। पिछले दिनों पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ होने वाली बैठकों के बाद नियमित प्रेस विज्ञप्ति व तस्‍वीर उनके कार्यालय से जारी होने लगी। प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के बाद उसकी खबर की जारी की जाने लगी। पिछले एक सप्‍ताह से टीवी चैनलों को दिये इंटरव्‍यू को भी उन्‍होंने अपने फेसबुक पेज पर अपलोड किया। चैनलों के साथ अखबारों को भी धड़ाधड़ इंटरव्‍यू दे रहे हैं। भाजपा और मांझी के दोहरे प्रहार झेल रहे नीतीश के पक्ष में लालू यादव भी नहीं बोल रहे हैं। वैसी स्थिति में नीतीश के सामने मीडिया का मोर्चा संभालने के अलावा कोई विकल्‍प नहीं बचा है। यह संयोग भी है कि नीतीश की मीडिया टीम ज्‍यादा सक्षम और तकनीकी रूप से अपडेट है। इसका लाभ भी उन्‍हें मिल रहा है।

By Editor


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