मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच चुप्पी टूट गयी। करीब तीन सप्ताह के बाद दोनों बीच दंड-प्रणाम हुआ और करीब डेढ़ घंटे तक राजनीतिक माहौल पर चर्चा हुई। कल शाम जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर जाकर अपने गीले शिकवे दूर किए और नीतीश कुमार को भरोसा दिलाया कि वह उनकी मर्यादाओं की रक्षा करेंगे। दोनों को एक-दूसरे को लेकर नाराजगी थी और यही टकराव का मुख्य कारण भी था।
वीरेंद्र यादव
विश्वस्त सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री का सरकारी आवास एक अण्णे मार्ग और नीतीश कुमार का सरकारी आवास 7 सर्कुलर रोड के बीच सत्ता के खींचतान ने दोंनो के बीच दूरी बढ़ा दी थी। प्रशासनिक अधिकारी भी एक नंबर के बजाय सात नंबर को तरजीह दे रहे थे। उनसे मंत्री भी कन्नी काटने लगे और मंत्रियों की वफादारी भी सात नंबर को लेकर ज्यादा थी। इस बात को लेकर मुख्यमंत्री काफी खफा चल रहे थे। ‘डमी मुख्यमंत्री’ के अहसास से वह परेशान थे। सार्वजनिक मंचों पर उन्होंने इस पीड़ा को अभिव्यक्त भी किया। उन्होंने खुद भी नेतृत्व को लेकर सवाल खड़ा किए और यहां तक कहा कि उनका कोई अफसर भी नहीं है।
मुख्यमंत्री के बयान से प्रशासनिक व राजनीतिक सत्ता दोनों पर सवाल उठने लगा था। सत्ता के खींचतान को लेकर भाजपा ने जमकर प्रहार किया और नीतीश पर सत्ता के लिए मांझी को अपमानित करवाने का आरोप भी मढ़ दिया। भाजपा का आरोप नीतीश कुमार को चुभ गया और उन्होंने विवाद पर विराम लगाना आवश्यक समझा। इसके लिए नीतीश कुमार ने मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को मध्यस्थ यानी बिचौलिया के रूप में चुना। उन्हें ही विवाद हल करने का जिम्मा सौंपा था। लेकिन यह काम आसान नहीं था।
अंजनी सिंह ने बिहार के राजनीतिक माहौल में विवाद से होने वाली क्षति और सीएम को होने वाले खुद के नुकसान के संबंध में समझाया। अंजनी सिंह ने कहा कि इस विवाद से नौकरशाही खुद दुविधा में है, जिसका विकास कार्यों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसके बाद सीएम मांझी सात नंबर जाने को तैयार हुए। बातचीत में श्री मांझी व श्री कुमार के बीच कई बार तकरार की भी नौबत आयी, लेकिन दोनों ने संयम से काम लिया। और विवादों से बचने का पूरा प्रयास करने का भरोसा दिलाया। लेकिन सवाल यह है कि सत्ता के दो केंद्रों के बीच ‘विवाद विराम’ कितने दिन तक रहता है, यह कहना अभी मुश्किल है।