बिहार की जनता विकास से ‘मंत्रमुग्‍ध’ है। नीतीश मोदी के सुर-ताल से सरकार ‘मंत्रमुग्‍ध’ है। पिछले तीन महीनों में बिहार में विकास की ‘गंगा’ बह रही है और ‘सत्‍ताधारी गंगा’ के लिए केंद्र सरकार ‘नमामीगंगे’ की योजना चला रही है। अब सात रेसकोर्स से लेकर एक अण्‍णे मार्ग तक की धारा एक हो गयी है। कोई रुकावट नहीं हो, इसके लिए सीबीआई, ईडी और आईटी को ‘ठेका’ सौंप दिया गया है।

वीरेंद्र यादव

पटना में कमल और तीर की दूरी बस एक दीवार ‘टपने’ की रह गयी है। एक अण्‍णे मार्ग में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार और पांच देशरत्‍न मार्ग में उपमुख्‍यमंत्री सुशील कुमार मोदी। दोनों आवासों के बीच दूरी सिर्फ एक दीवार की है। इसे लांघने या टूटने में कितनी देर लगती है। नीतीश कुमार और सुशील मोदी का सुर-ताल का सामंजस जबरदस्‍त है। दोनों एक-दूसरे की ‘प्रतिभा’ के कायल हैं। दोनों विकास के लिए वचनबद्ध हैं। सुशील मोदी नीतीश कुमार की प्रतिभा को कलमबद्ध करवाना चाहते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी नीतीश कुमार को ‘याद’ रख सके। पटना में उदय माहुरकर की पुस्‍तक ‘सवा अरब भारतीयों का सपना’ के विमोचन के मौके पर सुशील मोदी ने नीतीश पर जीवनी लिखने का आग्रह भी उनसे कर डाला।

 

आज पटना के होटल मौर्या में आयोजित एक कार्यक्रम में सुशील मोदी ने कहा कि भाजपा के सत्‍ता से ‘धकियाये’ जाने के बाद बिहार का विकास ठहर गया था। अब चार साल के बाद साथ आने से फिर ‘विकास दौड़ने’ लगा है। नीतीश मोदी के नये युग में एक बात बड़ी प्रखर रूप से सामने आ रही है कि भाजपा के लिए नीतीश कुमार ‘गेस्‍ट फैक्लिटी’ हो गये हैं। हालांकि 10 नवंबर, 1995 में महाराष्‍ट्र में आयोजित भाजपा की राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश पहली बार ‘विजिटर’ के रूप में शामिल हुए थे। वहीं से उनकी अंतरात्‍मा बदलने लगी थी और बाद में भाजपा के साथी भी बन गये। अब तो भाजपा के पर्याय ही बन गये हैं। New era of Nitish-Bihari Modi में दोनों पार्टियां का न लक्ष्‍य बदला है और न दुश्‍मन। संभव भी नहीं है। क्‍योंकि सत्‍ता के बिना राजनीति बेकार है और मजबूत दुश्‍मन के बिना लड़ाई। भाजपा के ही एक बड़े नेता ने कहा कि दोंनों के पास इसके अलावा विकल्‍प क्‍या है?

By Editor


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