बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी असंमजस में हैं। पूर्व मंत्री नीतीश कुमार के पक्ष में रहें या मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के साथ। नीतीश कुमार जदयू के बागी विधायकों की सदस्यता समाप्त करने पर तुले हैं तो मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी बागी विधायकों पर कठोर कार्रवाई के खिलाफ हैं। यही कारण है कि स्पीकर कोर्ट में हाजिरी लगा रहे विधायकों को सिर्फ तारीख मिल रही है। स्पीकर भी कोई स्पष्ट निर्णय का साहस नहीं जुटा रहे हैं। उधर नीतीश कुमार के आदेश के पालन में जुटे मुख्य सचेतक श्रवण भी स्पीकर पर दबाव बनाए हुए हैं।
बिहार ब्यूरो
यह संयोग है कि नीतीश कुमार विधान परिषद के सदस्य हैं और जीतन राम मांझी विधानसभा में पार्टी के नेता हैं। विधानसभा सत्र के दौरान सभी बागी विधायकों का मजमा मुख्यमंत्री कक्ष में लगता था और उनके प्रति वह अपनी आस्था भी जताते थे। बागी विधायकों ने मुख्यमंत्री को आश्वस्त कर दिया है कि हम आपके साथ हैं और सरकार पर कोई खतरा नहीं आने देंगे। इसके बाद सीएम ने भी बागियों को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया है।
स्पीकर को लेकर बागियों की भाषा और तेवर देखकर भी लगता है कि अब वह स्पीकर की आड़ में नीतीश कुमार पर हमला कर रहे हैं। वह भी अब मामले को टालने में ही रुचि ले रहे हैं। कुछ दिन बाद विधान परिषद की एक सीट के लिए चुनाव होना है और बागी फिर नीतीश कुमार से दुश्मनी निभाने के लिए किसी दूसरे उम्मीदवार को खड़ा करेंगे और नीतीश कुमार को चुनौती देंगे।
इस बीच जदयू के चार बागियों ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार सिंह, राहुल शर्मा व रवींद्र राय की किस्मत का फैसला अब सात, आठ और नौ अगस्त को होनेवाली सुनवाई में होने की उम्मीद है। शनिवार को सुनवाई होनी थी, लेकिन बागियों के मूल अधिवक्ता व विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू के नहीं होने के कारण उन्होंने अगली तारीख मांगी। सात से नौ अगस्त को चारों बागी अपना पक्ष रखेंगे। अंतिम दिन विधानसभा कोर्ट फैसला भी सुनाने की चर्चा है। इन चारों के अलावा एक और बागी विधायक सुरेश चंचल के मामले पर भी सुनवाई हुई। उन्होंने एक माह का समय मांगा, लेकिन नहीं दिया गया। अगली तारीख नौ अगस्त की दी गयी है। गौरतलब है कि तीन अन्य बागी विधायकों पूनम देवी, अजीत कुमार व राजू कुमार सिंह को भी पहले ही नौ अगस्त का समय दिया गया है। इधर, संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि शनिवार को विधायक संजय की गवाही होनी थी, लेकिन वे फिर उपस्थित नहीं हुए। अब उन्हें गवाही देने नहीं दिया जायेगा। फैसला जल्द होना चाहिए, लेकिन यह अधिकार न्यायालय के पास है।