मैं छपरा का धर्मसती गांव हूं. जहरीले मिड डे मील ने हमारी 23 संतानों को तीन साल पहले लील लिया था. हम दर्द भूल चुके थे पर चुनाव के मौसम में नेताओं ने जख्मों को फिर से कुरेदना शुरू कर दिया है.
अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट
चुनावी चहल पहल के बीच आज फिर छपरा जिले के मशरख प्रखण्ड का गंडामन धर्मासती गांव चर्चा में है.वैसे तो यह गांव छपरा जिले में है पर लोकसभा क्षेत्र महाराजगंज है और बिधानसभा बनियापुर. गांव के सामने ३ किलोमीटर की दूरी पर बहरौली बाजार के पास से स्टेट हाइवे गुजरती है यह सड़क पटना को सीवान से जोड़ती है.गंडामन गांव में जाने वाली सड़क चकाचक है. बिजली भी १५ घंटे से ज्यादा रहती है. गांव में आइसक्रीम की एक लघु इकाई भी बैठ गयी है .
गांव के मध्य में स्मारक बना है.जहरीला मिड डे खा कर व्यवस्था की भेंट चढ़ने वाले २३ बच्चों के नाम भी इस स्मारक पर खुदा है. गांव का सामुदायिक भवन चकाचक नजर आता है जिस जगह १६ जुलाई २०१३ को हादसा हुआ था वहां से थोड़ी दूर पर मिडिल स्कूल भी बना है.वहां अब ब्यवस्था बदली बदली नजर आती है. शिक्षक समय पर आते है मेनू के हिसाब से दोपहर का खाना तैयार होता है. पहले स्कूल के शिक्षक उस भोजन को ग्रहण करते हैं फिर बच्चों को परोसा जाता है.जिन बच्चो की मौत हुई थी उनके परिजनों को सरकार दवरा घोसित अनुदान राशि का भुगतान किया जा चूका है.
आजीवन टीसने वाला जख्म अनुदान के मरहम से कुछ हद तक भर भी गया है.पर चुनावी आहट के साथ इन जख्मों को फिर राजनीतिज्ञों ने कुरेदना शुरु कर दिया है.वोट की राजनीती करने वालो को पता है की जितना जख्म ताजा होगा इसे चुनावी मुद्दे के रूप में उतना ज्यादा भुनाया जा सकता है
चुनावी आहट से कुरेदते जख्म
आजीवन टीसने वाला जख्म अनुदान के मरहम से कुछ हद तक भर भी गया है.पर चुनावी आहट के साथ इन जख्मों को फिर राजनीतिज्ञों ने कुरेदना शुरु कर दिया है.वोट की राजनीती करने वालो को पता है की जितना जख्म ताजा होगा इसे चुनावी मुद्दे के रूप में उतना ज्यादा भुनाया जा सकता है.आज कल बड़ी बड़ी गाड़ियों के काफिले के साथ आने वाले अनजान चेहरे गांव में बने बच्चों के स्मारक पर फूल चढ़ातें है और उड़न छू हो जाते हैं.
सुनसान स्मारक की आयी याद
जहां बच्चों का शव दफनाया गया था वहां कुछ पेड़ लगाये गये थे वह अब लहलहा रहे हैं बच्चों की चिता भसम की मिटी की उर्वरता उन पेड़ो को नयी संजीवनी प्रदान कर रही है. गांव में जिन के बच्चे इस हादसे के शिकार हुए थे उनके साथ ही साथ गांव के अन्य गरीब लोगों को भी इंदरा आवास मिला है.मशरख से सहजीतपुर और बहरौली से वाया मदार पर जाने वाली सड़क इस गांव तक आती है.गर्मी का मौसम है आस पास के गांवों में जहां सन्नाटा है वही धर्मसती में कोलाहल है.
जिस समय घटना हुई थी उस समय नितीश कुमार उस गांव में नहीं गये थे जबकि २३ बच्चों की मौत हुई थी. रसोइए पाना देवी अब इस गाव में नहीं रहती. उसके बच्चे की भी मौत हुई थी इस हादसे में. यह हादसा साजिश थी या मानवीय भूल आज तक इस का फैसला नहीं हो पाया है. इस बार जदयू और राजद के साथ आने से बिपक्षी दलों को एक साथ गंडामन धर्मसती कांड के बहाने इनपर हमला करने का मौका मिल गया है.दर्द चीत्कार और आजीवन टीसने वाला जख्म लिये गंडामन मौन है इसे कभी मुखर होने का मौका ही नहीं मिला.