भारतीय रुपया के लिए 24 नवम्बर का दिन अपने अस्तित्व का सबसे बुरा दिन बन कर आया. रुपये के इतिहास में पहली बार हुआ कि वह डॉलर के मुकाबले गिर कर 68.86 पैसे के स्तर पर पहुंच गया. रुपया का सबसे सुनहरा दिन मार्च 1973 को था जब उसकी कीमत 7. 19 पैसे थी.
रुपया का इतना गिरना आज सुषमा स्वराज के उस बयान की याद दिलाता है जब उन्होंने विपक्ष में रहते हुए एक बार तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के समय कहा था कि रुपये ने अपनी कीमत खोई और देश ने अपनी गरिमा खोई.
रुपये की कीमत गिरने के पीछे मुख्य वजह विदेशी कोषों की लगातार निकासी है.
कल घरेलू मुद्रा दिन के समय में अपने सबसे निचले स्तर 68.85 पर पहुंच गई थी. इससे पहले 28 अगस्त 2013 को यह 68.80 के स्तर पर बंद हुई थी.
मुद्रा कारोबारियों के अनुसार निर्यातकों की ओर से माह के अंत में डॉलर की मजबूत मांग, विदेशी कोषों की सतत निकासी और अमेरिका के केंद्रीय बैंक की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की संभावना से घरेलू मुद्रा को नुकसान पहुंचा है.
उनके मुताबिक घरेलू शेयर बाजारों की धीमी शुरूआत से भी रुपया कमजोर हुआ है.
कल रूपया 31 पैसे टूटकर 68.56 के स्तर पर बंद हुआ था जो पिछले नौ महीने में सबसे निचला स्तर था.