नोटबंदी के फैसले का प्रकोप महामारी बन कर अब गांव-गांव तक फैलता जा रहा है. जहां इस फैसले से पहले आम लोग प्रभावित थे वहीं अब केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा को एक अस्पतल ने उनके भाई की लाश, पुराने नोटों के एवज देने सा साफ मना कर दिया.
नौकरशाही डेस्क
दूसरी तरफ गया के एक मरीज की डायलाइसिस न होने के कारण इसलिए मौत हो गयी कि उनके पास पुराने नोट थे. उधर अपने जमाने के प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर संदीप पाटिल को अपने बेटे की शादी के लिए बैंक से 2.5 लाख रुपये नहीं मिल सके. हालात की भयावहता का आलम यह है कि अब आम आदमी के साथ साथ खास लोगों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया है.
उधर बिहार के गांव-गांव में नोटबीं के तूफान ने गरीब मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी छीन रखी है. लोग के सामने अब रोटी की समस्या आ पड़ी है. बिहार के अखबारों को पलटिये तो जो तस्वीर सामने आ रही है उससे लगता है कि नोटबंदी का कुप्रभाव अब प्रकोप बन कर सामने आने लगा है. दैनिक हिंदुस्तान ने 24 नवम्बर को भागलपुर और मजुफ्फरपुर के कांटी से दो लाइव स्टोरी छापी है.
ये दोनों कहानियां बिहार में बिगड़ते और बेकाबू होते हालती की बानगी हैं. अखबार के अनुसार भागलपुर के जगदीशपुर पंचायत के योगीपुर गांव के मजदूरों की हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि अब उन्हें भूखे मरने पर मजबूर होना पड़ रहा है. दुकान खुलते हैं पर बिक्री नहीं, उधर मुजफ्फरपुर के निकट पकड़ी गांव के सहनी टोला के इंद्रजीत की खबर है. इंद्रजीत साफ कहते हैं कि उनके बच्चों के लिए रोटी का जुगाड किये हुए पद्रह दिन हो चुके हैं.
इसी तरह की भयावह मार किसानों पर पड़ने लगी है. नोटबंदी के कारण सब्जियों के खरीददार नहीं मिल रहे हैं. किसानों की हरी सब्जियां सड़ रही हैं. उधर बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने एक हफ्ते पहले एक अनुमान जारी किया था जिसमें बिहार को हर दिन 300 करोड़ के नुकसान की बात कही थी. लेकिन इन पंद्रह दिनों में हालात जिस तरह बद से बदतर होते जा रहे हैं उससे लगता है कि अब नुकसान का आंकड़ा हजार करोड़ को भी पार कर गया होगा.
ऐसे में एक सवाल है कि मोदी के मंत्री से ले कर देश के संत्री तक अगर नोटबंदी से कराह रहे हैं तो वे कौन लोग हैं जो पीएम मोदी के मोबाइल ऐप पर नोटबंदी का समर्थन कर रहे हैं? सवाल यह भी उट रहा है कि क्या नोटबंदी का समर्थन करने वाले भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ता तो नहीं हैं?