काला धन पर रोक लगाने के लिये प्रधानमंत्री द्वारा गत आठ नबंबर को किये गये 500 और 1000 रूपये के नोटबंदी का साइड इफेक्ट अब दिखना शुरू हो गया है.
अशोक कुमार मिश्रा
मोदी की इस घोषणा ने जहां राजनीतिक दलों की बोलती बंद कर दी थी तो आम जनता इस बात को लेकर खुश थी कि अब बड़े धनपतियों के गर्दन पर कानून के हाथ पड़ेगें.यही वजह थी कि एक – एक रूपये के लिये बैंकों और ए टी एम के सामने लाइन में खड़े लोग मोदी की तारीफ करते नही थकते थे. लेकिन तीन सप्ताह के अंदर ही नजारा बदल गया है. किसान मजदूरों के अलावे अब नौकरीपेशा लोगों का भी मोह भंग होता दिख रहा है. भर महीने दुकानदारों का राशन उठाने वाले कर्मचारी अब इस बात से चिंतित हैं कि अब अपनी सैलरी का पैसा रहते हुए वे राशन वाले,दूध वाले का भुगतान कैसे कर पायेंगे. स्थिति को सामान्य करने के लिये केन्द्र सरकार ने इस बीच एक दर्जन से ज्यादा फैसले लिये लेकिन अब तक नोट की समस्या का समाधान नही हो पाया .
50-50 आफर
तीन सप्ताह के बाद अब मोदी सरकार हांफने लगी है. एक तरफ जहां सरकार ने काला धन रखने वालों को 50 – 50 का आफर देकर उनके सामने आत्म समर्पण कर दिया है और उनके नाम को गोपनीय रखने के फरमान से यह सवाल उठने लगा है कि आखिर यह जनता कैसे जान पायेगी कि काला धन ऱखने वाले लोग कौन हैं और उनका सफेद धन कितना हुआ. आखिर इसमें कितनी हेराफेरी होगी यह पता कैसे चलेगा.क्या केन्द्र सरकार यह समझ गयी है कि उसके लाख चाहने के बाद भी धनकुबेरों की गर्दन तक कानून के लंबे हाथ नही पहुंच पायेगें.
अब तो यह भी खबर आ रही है कि चन्द्रबाबू नायडु के संयोजकत्व में 13 सदस्यीय समिति बनायी गयी है जो इस नोटबंदी के साइड इफेक्ट पर अपना सुझाव देगी.दूसरी तरफ सरकार के इस फैसले ने रातो रात कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को गरीबो का नेता बना दिया है तो बगाल की शेरनी ममता बनर्जी अब इस मुद्दे को लेकर समूचे देश में मोदी के खिलाफ दहाड़ रही है. यू पी के बाद आज बिहार मे ममता के धरने की सफलता ने यह साबित किया है कि जनता की भागीदारी अब नोटबंदी के खिलाफ होने लगी है.
गिरते बाजार से किसान बेहाल
बाजार में सब्जियों के भाव गिरने से किसान बेहाल है तो पैसे के अभाव में रबी की फसल बुआई पर असर पड़ना स्वाभाविक है. शादी विवाह जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर पैसे की तंगी का असर तो दिख ही रहा है सोनें की खरीद में हो रही धांधली से सबसे ज्यादा प्रभावित मध्यम वर्ग के लोग हो रहे हैं. अब तो आरबीआई ने पुराने नोट रखने के लिये राज्य सरकारों से जगह की मांग की है.
नेता भी हो रहे विरोध में मुखर
इस नोटबंदी के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज करने वाले नेताओं का भी अब मुंह खुलने लगा है.पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य से के बयानों के बाद यह तो साफ हो गया है कि इस नोटबंदी से कालेधन का आना तो संभव नही है देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर सकती है. देखना है मोदी का यह नोट स्ट्राइक काला धन लाने में कामयाब हो पाता है या इसके साइड इफेक्ट को फिर एक बार जनता ही भुगतने को विवश होती है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, वाया फेसबुक