वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक रुपयाबंदी के फैसले ने भारत को सदियों पुराने वस्तु-विनिमय यानी अनाज के बदल उत्पाद खरीदने-बेचने के दौर में पहुंचा दिया है.
गौर तलब हो कि जब क्रंसी नोट का चलन नहीं था तो अनाज, कीमती वस्तु या सेवा के एवज उत्पाद या सेवा का विनिमय होता था. रुपये के चलन के बाद धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो गयी. लेकिन 8 नवम्बर को मोदी सरकार ने जब देश की अर्थ व्यवस्था से 86 प्रतिशत नोटों को ( पांच सौ व हजार के) बंद करने का फैसला किया तो देश से रुपये की भारी किल्लत हो गयी.
वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार उड़िसा के खुलिया गांव की अनिमा सुधा कहती हैं हमें बच्चों को रोटी मुहैया करनी है.इस गांव के व्यापारी भागिरथ बारिक इन दिनों अपने उत्पादों को वस्तुओं की अदला-बदली के द्वारा बेच रहे हैं. फिलहाल उन्होंने एक किलो आलू, एक किलो गोभी और एक किलो टमाटर के एवज आधा किलो मधु बेच रहे हैं. वह कहते हैं यह कोई नुकसान का सौदा नहीं है. वह कहते सामान्य दिनों में एक किलो मधु जिसकी कीमत 120 रुपये होती है जबकि सब्जियों की कीमत 70 रुपये तक है. वह कहते हैं यह सामान्य समय नहीं है, न तो इस गांव के लिए और न ही देश के लिए.
इसी गांव के रहने वाली द्रुवंदनी नाहक कहती हैं घर में खाने पीने की कोई चीज नहीं ऐसे में हमें यह तय करना है कि बच्चे भूखे न रहें. इसलिए घर के एक तरह के अनाज के बदले दूसरे अनाज या खाने की दूसरी चीजें हासिल करना हमारी मजबूरी है.