भारतीय प्रशासनिक सेवा के बिहार कैडर में ब्राह्मणों का आधिपत्य समाप्त हो गया। कभी शीर्ष पद विराजमान रहने वाली ब्राह्मण जाति आज हासिए पर चली गयी है। जबकि एसटी, एसी और ओबीसी अधिकारियों की संख्या में इजाफा हुआ है।
वीरेंद्र यादव
बिहार कैडर के आइएएस अधिकारियों की जाति पर आधारित अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि अधिकारियों के जातिगत स्वरूप में तेजी से बदलाव आया है। राज्य में मुख्य सचिव, प्रधान सचिव व सचिव स्तर के वेतनमान में 63 अधिकारी हैं। इनमें से मात्र दो ब्राह्मण हैं। हाल के वर्षों में एसटी,एससी और ओबीसी अधिकारियों की संख्या में काफी बढ़ी है। 63 अधिकारियों में एसटी-एससी के 14 अधिकारी हैं, जबकि ओबीसी के 16 अधिकारी हैं। सवर्ण अधिकारियों में कायस्थों की संख्या सर्वाधिक है। कायस्थ 10, भूमिहार 7 और राजपूत अधिकारियों की संख्या 6 है। 63 में से 8 अधिकारी ऐसे भी हैं, जिनकी जाति को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी है।
जाति, क्षमता और वफादारी
अधिकारियों के स्थानांतरण और पदस्थापन में तीन चीजों की बड़ी भूमिका होती है- जाति, क्षमता और वफादारी। क्षमता व वफादारी व्यक्ति और सरकार के अनुसार बदलती रहती है, जबकि जाति अधिकारी की स्थायी पहचान होती है। बिहार में ट्रांसफर-पोस्टिंग में क्षमता और वफादारी से ज्यादा निर्णायक भूमिका जाति की होती है। पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने एसटी-एससी अधिकारियों की बैठक बुलायी थी तो काफी हंगामा हुआ था। इसके प्रतिवाद में मांझी ने कहा कि पहले भी अधिकारियों की जातिगत बैठक होती थी, लेकिन कभी हंगामा नहीं हुआ। यह भी रोचक है कि प्रधान सचिव अरुण कुमार सिंह के स्थानांतरण के बाद नीतीश कुमार जीतनराम मांझी से काफी नाराज हो गए थे। मांझी की विदाई अरुण सिंह के स्थानांतरण के मुद्दे पर हो गयी थी। वह अरुण सिंह सीएम नीतीश कुमार के स्वजातीय थे।