इंजीनियर हत्याकांड के बाद मीडिया की अतिसक्रियता जहां सरकार के लिए चुनौती बनी वहीं एक खास ‘मानसिकता’ के नौकरशाहों की निष्ठा संदेह के घेरे में आ गयी. लिहजा सरकार को ऐसे नौकरशाहों की ‘दवाई’ करने की जरूत है.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
इंजीनियर हत्याकांड ने बिहार सरकार को दो गंभीर सबक दिया है. सबक यह कि मीडिया कानून व्यवस्था के इश्यु पर सरकार की विफलता को काफी संवेदनशीलता से उठायेगा और किसी भी हाल में सरकार पर आक्रमण में नरमी नहीं दिखायेगा.
गठबंधन सरकार के लिए दूसरा सबक और चुनौती आंतरिक है. इंजीनियर हत्याकांड ने यह सिखा दिया है कि खुद सरकार के अभिन्न अंग नौकरशाही का एक बड़ा तबका सामाजिक न्याय विरोधी है. जो किसी भी क्षण सरकार की फजीहत कराने को तत्पर रहती है. गंभीर चुनौती जब घर के अंदर हो तो यह ज्यादा खतरनाक होती है.
पहली चुनौती एक हद तक लोकतांत्रिक व्यवस्था में अनिवार्य और अपरिहार्य है पर दूसरी चुनौती अस्वाभाविक है. ऐसा इसलिए कि घर का भेदी लंका ढाये की तर्ज पर अगर चुनौती आंतिरक हो तो सरकार के लिए यह एक गंभीर मुद्दा है. पिछले दिनों कानून व्यस्था पर उच्चस्तरीय बैठक में सीएम नीतीश कुमार ने इस चुनौती को बखूबी पहचाना भी. यही वजह है कि उन्होंने अनेक अफसरों को न सिर्फ चेतावनी दे डाली बल्कि वैसे अफसरों को आइडेंटीफाई भी किया जो सरकार के प्रति समर्पित नहीं. उधर लालू प्रसाद ने इस संवेनशील मामले को इशारों-इशारों में जता दिया है.
ब्रह्मेश्वर मुखिया का भूत
इंजीनियर हत्याकांड के तीन दिनों बाद चुप्पी तोड़ते हुए लालू ने स्पष्ट रूप से मंगलवार को कह डाला कि (रणवीर सेना के सरगना) ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद तत्कालीन डीजीपी( अभ्यानंद) ने पुलिस का मनोबल गिरा दिया था. उन्होंने यह भी कहा कि अब पुलिस का मनोबल बढ़ना चाहिये. लालू के इस वाक्य में गठबंधन सरकार की पूरा सार छिपा है.
इसलिए राज्स सरकार ऐसे नौकरशाहों को गिन-गिन कर चिन्हित करने की रणनीति पर काम शुरू कर रही है. राजनीतिक गलियारे के उच्चस्तरीय सूत्र बताते हैं कि सरकार सामाजिक न्याय विरोधी नौकरशाहों को एक एक कर दरकिनार करेगी. उनकी जगह ऐसे नौकरशाहों को कीपोस्ट पर लाया जायेगा जो सरकार की नीतियों के प्रति निष्ठावान और समर्पित हों. लालू प्रसाद ने मंगलवार को प्रेसकांफ्रेंस करके इन मुद्दों की तरफ इशारा किया. ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के दौरान पुलिस के रवैये की तरफ इशारा करने का उनका मतलब भी यही था.
नौकरशाहों की निष्ठा का सवाल
गौर करने की बात है कि मुखिया की हत्या के बाद एक खास मानसिकता के पुलिस अफसरों की ढिलाई और ढिठाई के कारण हजारों हुड़दंगी पटना के वीआईपी जोन में घुस आये थे उनकी मंशा इतनी खतरनाक थी कि लगा था कि वे मुख्यमंत्री आवास पर धावा तक बोल देंगे. उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना से बाहर थे. सत्ता के गलियारे के अंदर के सूत्रों का कहना था कि इस मामले में राज्य के डीजीपी के इशारों पर उन हुड़दंगियों को सह मिली थी. जबकि उन्हें रोकने और नियंत्रित करने के लिए खुछ खास जूनियर स्तर के निष्ठावान पुलिस अफसरों ने काम किया था. उस समय एक वरिष्ठ पुलिस अफसर का नाम सामने आया था जो हत्या और नरसंहार के कुख्यात आरोपी ब्रह्मेश्वर मुखिया के अंतिम सरकार में शामिल भी हुए थे.
लालू प्रसाद उस समय सरकार का हिस्सा नहीं थे. लेकिन मंगलवाल की प्रेस कांफ्रेंस में जिस तरह से एक डीजीपी ( अभ्यानंद) का उल्लेख किया उससे समझने वाले समझ गये कि पुलिस के आला ओहदों पर बैठे कुछ अफसरों की सोच राजनीतिक रूप से गठबंधन सरकार की विरोधी है.
ऐसे में आने वाले दिनों में राज्य सरकार वैसे नौकरशाहों को किनारे लगायेगी, यह तय है.