भले ही पावर के मामले में डीएम, एसपी पर बीस पड़ता हो पर दोनों पदों पर बैठे नौकरशाहों के बीच रुत्बे और रोब के टकराव का खामयाजा प्रशासनिक कामों पर पड़ता ही है. इस मामले में राज्य सरकारें भी कई बार समझ नहीं पातीं कि इन दोनों अफसरों के बीच संतुलन कैसे बिठाया जाये. बिहार सरकार भी इन दोनों अफसरों के मामले में नित नये प्रयोग करती रहती है. इस बार बिहार सरकार ने मजबूर हो कर फिर पूरानी व्यवस्था को लागू कर दिया है जिसके तहत जिलों के एसएसपी व एसपी के कार्य मूल्यांकन की रिपोर्ट डीएम, डीआईजी के साथ मिल कर लिखेंगे.
इस संबंध में बिहार के गृह विभाग ने एक नया संकल्प जा कर दिया है.
हालांकि यह व्यस्था पहले भी थी लेकि बीच के वर्षों में डीएम से यह अधिकार ले कर अकेले डीआईजी के हवाले कर दिया गया था.
लेकिन आईएएस-आईपीएस कैडर टकराव के कारण अकसर दोनों के बीच शीत युद्ध की स्थिति बनी रहती थी. पिछले कुछ वर्षों में जब एसपी का कार्य मूल्यांकन प्रतिवेदन (पीएआर) लिखने का अधिकार जब डीएम से ले कर सिर्फ डीआईजी के हवाले कर दिया गया तो जिलों के एसपी डीएम के प्रति जवाबदेह न हो कर अपने कैडर के विरष्ठ अफसर यानी डीआईजी के प्रति वफादार और जिम्मेदार रहने लगे.
सूत्रों का कहना है कि इससे जिले में कानून और व्यवस्था बनाये रखने के मामले में कई बार डीएम और एसपी के बीच सामंजस्य की कमी देखी गयी. जिसके कारण प्रशासनिक कार्यों में काफी दिक्कतें आने लगीं.
आईपीएस और आईएएस कैडरों के बीच तनातनी के मामले का स्थाई समाधान सरकार भी नहीं खोज पा रही है. इसके पहले जब डीएम से एसपी की पीएआर लिखने का अधिकार लिया गया तो सरकार यह मान कर चल रही थी कि डीआईजी को यह अधिकार दे देने से परिस्थितियां बदलेंगी लेकिन इसका कोई फायदा सरकार को नहीं हुआ. क्योंकि कई जिलों में सरकार को यह शिकायत मिलती रही कि कानून व्यवस्था नियंत्रण मामले में डीएम और एसपी के बीच अघोषित टकराव की स्थिति बन जाती है.
लेकिन अब गृह विभाग ने मान लिया है कि जिला के मामले में फिर से डीएम को यह अधिकार दे देना ही उचित है. इस लिए गृह विभाग ने नया संकल्प जारी किया है. इसके तहत डीएम और डीआईजी मिलकर एसएसपी या एसपी की पीएआर लिखेंगे.