घोटालों की जांच कर रही परमार कमेटी की रिपोर्ट से यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि पटना एम्स में चपरासी से ले कर प्रोफेसरों तक की बहाली में भारी घोटाला हुआ है.
परमार कमेटी की यह रिपोर्ट दैनिक भास्कर के हाथ लगी है. उस रिपोर्ट पर आधारित खबर हम हू-ब-हू अपने पाठकों को पेश कर रहे हैं.
प्रदीप सुरीन नई दिल्ली/पटना
बिहार के मरीजों को राज्य में ही इलाज के उद्देश्य से बने पटना एम्स में भर्ती घोटाला हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से गठित ‘परमार कमेटी’ की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यहां प्रोफेसर से लेकर चपरासी तक की भर्तियों में घोटाले हुए हैं। सरकारी नियमों और दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर पदों व विभागों का सृजन किया गया। पटना एम्स में नौकरियां बांटने के लिए तय पदों से कहीं आगे बढ़कर मन-मुताबिक नियुक्तियां हुई हैं।
‘भास्कर’ के पास मौजूद 132 पेजों की जांच रिपोर्ट में पटना एम्स निदेशक पर गंभीर आरोप लगाए हैं और कड़ी-कार्रवाई की सिफारिश की है। बिहार के एक सांसद ने मंत्रालय से इस संबंध में शिकायत की थी। निदेशक अशोक कुमार की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय जांच दल ने एम्स प्रशासन से रिकॉर्ड पेश करने को कहा था, लेकिन प्रशासन जांच कमेटी के समक्ष कोई कागजात पेश नहीं कर पाया। पटना एम्स के निदेशक डॉ. जीके सिंह भी कोई संतोषजनक जवाब देने में नाकाम साबित हुए हैं।’
कोई भी नियुक्ति स्थायी नहीं है
हालांकि पटना एम्स के डायरेक्टर जीके सिंह ने कहा है कि कोई भी स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है। एजेंसी के जरिए आउटसोर्सिंग की गई है। मंत्रालय के निर्देश के तहत बजट को ध्यान में रखकर ही कोई पद भरा गया है। कोई भी गड़बड़ी नहीं हुई है।
सिर्फ इंटरव्यू से भर दिए पद
सामान्यत: किसी भी सरकारी नौकरी के लिए लिखित परीक्षा के अंकों को भी जोड़ा जाता है। लेकिन चयन समिति ने पदों को भरने के लिए सिर्फ इंटरव्यू के ही अंकों को आधार बनाया।
फर्जी ढंग से बनाया प्रोफेसर
डॉ. रामजी सिंह को एडीशनल प्रोफेसर के लिए चयनित किया। लेकिन नियमों की अनदेखी कर प्रोफेसर बना दिया। उन्हें 9 माह तक प्रोफेसर की तनख्वाह भी दी गई।
ओबीसी कोटे की नियुक्तियों में गड़बड़ी
एनाटॉमी विभाग में ओबीसी के लिए आरक्षित पद पर सामान्य वर्ग के डॉ. शीनू की नियुक्तिकर दी। असिस्टेंट प्रोफेसर के आरक्षित सीटों में नियुक्तिके दौरान सामान्य के लिए 100 में से 50 अंक की योग्यता तय की। लेकिन ओबीसी का मापदंड नहीं तय किया। चार असिस्टेंट प्रोफेसर पदों के लिए सामान्य उम्मीदवारों में से तीन का चयन किया। ओबीसी के लिए इंटरव्यू में आए उम्मीदवारों के रिकॉर्ड तक नहीं रखे।
‘इंजीनियरिंग विभाग’ गैरकानूनी
नए विभाग बनाने के लिए केंद्रीय मंत्रालय की अनुमति जरूरी है। लेकिन एम्स में इंजीनियरिंग विभाग बना दिया। कमेटी ने इसकी सभी नियुक्तियों को गैरकानूनी माना। मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद एम्स प्रशासन इस विभाग के 11 महीने पूरे करवाने पर अड़ा है।
नियम के खिलाफ नए पद बनाए
एम्स में गैर-कानूनी पदों का सृजन किया गया। इन पर कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारी नियुक्त कर दिए। स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश के बाद भी सुधार नहीं किया। कमेटी ने पाया है कि इन नियुक्तियों में क्वालिफिकेशन और एक्सपीरियंस के मापदंड पूरे नहीं किए गए हैं।
107 पद थे, 144 से ज्यादा नियुक्तियां हुईं
निदेशक ने कहा कि इतनी नियुक्तियां जरूरी थीं। लेकिन जांच में पता चला है कि नियुक्तियों की संख्या बढ़ाने और कर्मचारियों की तनख्वाह देने जैसे अहम मुद्दों पर भी अभी तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से अनुमति नहीं मिली है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में खुलासा: नियमों को ताक पर रखकर पद और विभाग बनाए