मक्र संक्रांति के दिन पटना के समीप हुए हृदय विदारक नाव हादसे में 24 लोगों की जान जाने के बाद अफसरों पर हुई कार्रवाई से नौकरशाही के गलियारे और सोशल मीडिया में जबर्दस्त आक्रोश है. पढ़िए आंखें खोलने वाले सात फैक्टस.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
इस हादसे के बाद अफसरों पर हुई कार्रवाई को एकतरफा बताया जा रहा है. बिहार पुलिस सेवा व बिहार प्रशासनिक सेवा संगठनों ने भी इस कार्रवाई के खिलाफ गोलबंदी शुरू कर दी है.
इन संगठनों ने इमर्जेंसी मीटिंग बुला कर अपनी बात सीएम नीतीश कुमार तक पहुंचाने के लिए समय मांगा है. यहां यह याद रहे कि मक्रसंक्रांति के दिन पर्यटन विभाग ने गंगा दियारा में पतंग उत्सव का आयोजन किया था. शाम को लौटते समय नाव जब पटना स्थित गंगा घाट तक पहुंचने ही वाली थी तो वह डूब गयी जिसके चलते 24 लोग डूब कर मर गये. यह हृदयविदारक घटना सीधे तौर पर प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा था. स्वाभाविक था कि इसकी जांच की जाये और दोषियों को सजा हो. सो सरकार ने जांच कराई और इसमें छपरा के एसडीओ, एसडीपीओ को सस्पेंड कर दिया गया. दूसरे दिन सारण के डीएम दीपक आनंद को उनके पद से हटा दिया गया.
इस कार्रवाई को पूरी तरह से एकतरफा बताया गया. सारण के अधिकारियों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया जबकि उससे ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी पटना के अधिकारियों की थी जिन्हें बख्श देने में कोई कोताही नहीं बरती गयी. इस कार्रवाई के बाद सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों ने इसे ‘अंधेर नगरी’ और ‘चौपट राजा’ जैसे शब्दों के साथ आलोचना की गयी.
आइए इस मामले में के सात महत्वपूर्ण विंदुओं पर गौर करते हैं.
एक
पतंग उतस्व का आयोजन पर्यटन विभाग ने किया था. रेवेन्यू जिला क लिहाज स पतंग उत्सव सारण में था. लेकिन व्यवहारिक तथ्य यह है कि गंगा दियारा के जिस क्षेत्र में आयोजन हुआ वह नियंत्रण के लिहाज से सारण के प्रशासनिक परिधि से बाहर है. एक अधिकारी कहते हैं कि वहां सारण का पुलिस थाना तक नहीं है. वह क्षेत्र पटना से महज दोकिलो मीटर की दूरी पर है. दूसरी तरफ जब यह आयोजन हुआ तो पर्यटन विभाग ने, सारण जिला प्रशासन से कोई मीटिंग, कोई संवाद तक नहीं किया था. इतना ही नहीं, नौकरशाही डॉट कॉम को जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार आयोजन के लिए सारण जिला प्रशासन से एनओसी( नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट) भी नहीं लिया गया. हां इतना जरूर किया गया कि आयोजन से दो दिन पहले सारण जिला प्रशासन को सूचित किया गया. इस सूचना के बाद प्रशासन ने मजिस्ट्रेट की ड्युटी लगायी.
दो
इस आयोजन में पटना जिला प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका थी. आयोजन स्थल पर हजारों की संख्या में गंगा के दक्षिणा छोर यानी पटना की तरफ से गये थे.इसी तरफ से अफसरों का काफिला भी गया था. पटना जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन के लोग भी थे. ऐसे में सुरक्षा की जिम्मेदारी से पटना प्रशासन को बरी नहीं किया जा सकता था.
तीन
जब दुर्घटना हुई तो राज्य सरकार ने एक जांच कमेटी बनायी. इसमें पटना के एसएसपी मनुमहाराज को रखा गया. लेकिन मनुमहाराज के नाम पर बड़े पैमाने पर आपत्ति दर्ज कराई गयी. कहा गया कि पटना पुलिस प्रशासन की विफलता की जांच खुद मनुमहाराज कैसे कर सकते हैं? इस दबाव को देखते हुए राज्य सरकार ने पटना क्षेत्र के डीआईजी शालीन को इसमें शामलि किया गया. इस जांच दल में दूसरे सदस्य आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत थे. इन दोनों की टीम ने जो रिपोर्ट सौंपी उस रिपोर्ट में न तो पटना के एसएसपी या दीगर पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया गया और न ही पटना के डीएम संजय अग्रवाल को इसके लिए जिम्मेदार माना गया. और गाज गिरी तो सिर्फ सारण के अधिकारियों पर.
चार
कहने को पटना के एडीएम को दोषी माना गया लेकिन उन्हें तुरत तबादला करके दूसरे विभाग की जिम्मेदारी सौंप दी गयी. इसी तरह पर्यटन विभाग की प्रधान सचिव हरजोत कौर को खनन विभाग के प्रधान सचिव बना डाला गया. एक विभाग से हटा कर दूसरे विभाग की तत्काल जिम्मेदारी सौंप देने व्यावहारिक तौर पर कोई कार्रवाई नहीं मानी जाती. जबकि इसी मामले में सारण के डीएम को उनके पद से हटा दिया गया और वेटिंग फार पोस्टिंग में डाल दिया गया. वेटिंग फार पोस्टिंग का मतलब साफ है कि उनसे उनकी सारी जिम्मेदारियां और सारी सुविधाओं से वंचित कर दिया गया. एक तरफ पर्यटन विभाग की सचिव व पटना के एडीएम को तत्क्षण दूसरी जिम्मेदारी सौंपते हुए उनकी सुविधायें बरकार रखी गयी. ऐसे में सजा के लिहाज से सारण के डीएम पर ही गाज गिरी.
पांच
एक तरफ पटना के किसी पुलिस अधिकारी, सिविल अधिकारी पर व्यावहारिक रूप से कोई कार्रवाई नहीं हुई वहीं सारण के एसडीपीओ अली अंसारी व एसडीओ मदन कुमार को सस्पेंड कर दिया गया.जबकि डीएम दीपक आनंद को किसी भी पद से तत्काल वंचित कर दिया गया.
छह
सामाजिक न्याय पर निशाना
इस कार्रवाई को कुछ लोग सामाजिक न्याय का गला घोटने के चश्मे से देखने की कोशिश कर रहे हैं. दबी जुबान में बीएसए के एक अधिकारी तर्क देते हुए कहते हैं- कार्रवाई के शिकार होने वाले तीनों अधिकारी पिछड़ी जाति से हैं. वह अधिकारी सवाल उठाते हुए कहते हैं कि राजधानी में कार्यरत जिन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई उनमें एक भी सस्पेंड नहीं हुआ. जिन पर कार्रवाई के नाम पर कुछ हुआ भी तो वह कार्रवाई इसलिए नहीं मानी जा सकती क्योंकि उन्हें एक पद से हटा कर दूसरे पद पर बिठा दिया गया.
सात
किसी भी सार्वजनिक आयोजन के लिए संबंधित जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन के साथ सुरक्षा के लिए आपदा प्रबंधन विभाग की भी जिम्मेदारी बराबार की होती है. नाव हादसे के दौरान अगर आपदा प्रबंधन विभाग के अफसरान और कर्मी मौके पर मुस्तैद होते तो इतने बड़े हादसे की संभावना टाली जा सकती थी. आपदा प्रबंधन विभाग के किसी जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. एक सरकारी अधिकारी गोपनीयता की शर्त पर सीधा सवाल करते हैं कि आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव इस जांच दल के प्रमुख थे, क्या इसी लिए आपदा प्रबंधन विभाग के कर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई?
ऊपर के सात प्वाइंट्स पर गौर करें तो पता चलता है कि बिहार प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा के साथ साथ सोशल मीडिया पर जो नाराजगी देखी जा रही है उसके पीछे इन्ही बिंदुओं के अनुत्तरित प्रश्न अपना जवाब खोज रहे हैं. और शायद इसी लिए लोग इस कार्रवाई को अंधेर नगीरी की संज्ञा दे रहे हैं.