एक तरफ पीएम मोदी के आलोचकों का मानना है कि उनके कार्यकाल में चीन, नेपाल और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से रिश्ते खराब हुए हैं वहीं उन्हों विदेश सचिव पर भरोसा बरकार रखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ा दिया है. ऐसा क्यों?
विदेश सचिव जयशंकर ने दो साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है लेकिन प्रधान मंत्री के खास और विश्वास पात्र व्युरोक्रेट एस जयशंकर अपने पद पर बने रहेंगे और भारत की विदेश नीति को मौजूदा रूप में आगे बढ़ाते रहेंगे. हालांकि जब से मोदी सरकार आयी है तब से उनके विरोधी इस बात पर उनकी आलोचना करते रहे है ंकि तब से अब तक नेपाल जैसे शांत पड़ोसी देश से भी भारत के रिश्ते बिगड़े.
हालत हो यह हो गयी कि भारत को छोड़ नेपाल अब चीन की तरफ अपना झुकाव बढ़ा चुका है. भारतीय मूल के मधेशियों की स्थिति वहां पिछले कुछ सालों में चिंताजनक हुी है. इसी तरह पाकिस्तान से रिश्ते तनावपूर्ण होते चले गये और जहां तक अमेरिका की बात है, तो कहा यह जा रहा है कि भारत अमेरिका की तरफ अपना झुकाव बढ़ाता जा रहा है जो भारतीय विदेश नीति के पारम्परिक ढ़र्रे के विपरीत है.
हिंदुस्तान टाइम्स में प्रशांत झा ने लिखा है कि पड़ोसियों से रिश्तों में कड़वाहट के बावजूद भारती की विदेश नीति डायनामिक है और यह समय की मांग है. इसके अलावा जहां तक एसजयशंकर की बात है तो पीएम मोदी उनके वैश्विक दृष्टिकोण से खासे प्रभावित हैं साथ ही मोदी एस जयशंकर के जोखिम भरे निर्णयों को पसंद करते हैं.
ध्यान रहे कि मोदी सरकार ने सत्ता संभाने के कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह को हटा कर एस जयशंकर को विदेश सचिव की जिम्मेदारी सौंपी थी.