तहलका के संपादक तरुण तेजपाल का वह मेल आप भी पढ़ें जिसमें उन्होंने भलमनसाहत में अपनी गलतियों को स्वीकार कीं.उन्होंने लिखा है कि महिला पत्रकार के साथ क्या क्या किया.
प्रिय…..
‘मैं तुम्हें यह नहीं बता सकता है कि यह मुझे कितना कौंध रहा है. लेकिन मैं यह स्वीकार करना चाहता हूं कि मैंने हमारे बीच विश्वास और आदर के एक लंबे रिश्ते को दूषित किया है. मैं बिना किसी शर्त के उस शर्मनाक घटना के लिए क्षमा मांगता हूं, जिसके तहत मैंने 7 और 8 नवंबर को दो बार तुम्हारे साथ गलत किया . तुमने तब इसका विरोध करते हुए कहा था कि तुम मुझसे ऐसा कुछ नहीं चाहती हो.’
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मैं हूं गुनाहगार
‘हालांकि इस बात के कई कारण हैं कि मैंने अपने पछतावे को क्यों छुपाया, लेकिन उन सबसे प्रमुख यह बात है कि मैंने तुम्हारा दिल और अपने प्रति तुम्हारे विश्वा्स को तोड़ा है. मैंने हमेशा नारी के अधिकारों और उसकी पूर्ण स्वरतंत्रता की बात की है. ऐसे में मुझे खुद को इस दुखद परिस्थिति में खड़ा देखना, बहुत लज्जित करने वाला है. मैं कहूंगा कि वह पल उन्माद का पल था. हालांकि यह जिम्मे दारियों से भागने जैसा होगा, लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता. मैं इनसब के लिए खुद को पहला और आखिरी जिम्मेगदार मानता हूं.’
‘तहलका मत छोड़ना’
‘मैं जानता हूं कि शोमा( तहलका की प्रबंध सम्पादक) ने तुमसे तहलका नहीं छोड़ने की विनती की है. मैं जानता हूं कि मैं यह कहने का हक खो चुका हूं, लेकिन फिर भी यह विनती करना चाहूंगा कि तुम संस्थान छोड़ कर मत जाना. मैं यह विश्वास दिलाता हूं कि तुम यहां पहले जैसे स्वाभिमान और स्वनतंत्रता से काम कर पाओगी. तुम्हें यहां किसी भी तरह के डर या एहसान जैसा माहौल नहीं मिलेगा और मैं खुद तुम्हारे लिए हर पल मौजूद रहूंगा. तुमने मुझे अबतक एक अलग इंसान के रूप में जाना, एक संपादक के रूप में, जिसपर तुमने बहुत विश्वास किया और जिसपर तुम्हें बहुत गर्व था. इस अविवेकपूर्ण भूल के बाद भी मैं तुम्हेंय बताना चाहूंगा कि वह इंसान आज भी मौजूद है और वह तुम्हापरे प्रति अपार आदर भाव रखता है.’
‘तुम पर बहुत गर्व है कि तुम मेरे सहकर्मी की बेटी और फिर मेरी सहकर्मी बनीं. मैंने तुम्हें एक ईमानदार पत्रकार के तौर पर बढ़ते और परिपक्वि होते देखा है. मैं तुम्हातरी परेशानी और दुख को समझ सकता हूं. लेकिन अगर मेरा अफसोस करना तुम्हातरे दुख को कुछ कम करता है तो मैं यकीन दिलाता हूं कि हमारे बीच सबकुछ इस विपदा की घड़ी से पहले जैसा होगा.’
-तरुण