राइटर्स ऐंड जर्नलिस्ट एशोसियेशन (वाजा) की बिहार शाखा की, आज हिन्दी साहित्य सम्मेलन में संपन्न हुई बैठक में, पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या पर शोक का प्रस्ताव लाया गया।
बैठक की अध्यक्षता एशोसियेअशन की बिहार इकाई के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने की। वक्ताओं ने इस बात पर अवश्य संतोष व्यक्त किया कि, बिहार के मुख्यमंत्री ने इस घटना को गंभीरता से लिया है। लेकिन चिंता इससे समाप्त नही हो जाती, यह बात भी सामने आई। इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही है? पत्रकारों की सुरक्षा के संबंध में सरकार कितना प्रतिबद्ध है? अपराध कर्मियों के मन से शासन का भय क्यों समाप्त हो रहा है? अपराधकर्मियों का पुलिस और नेताओं से गठजोड़ के कारण क्या है? और यह सबकुछ कबतक चलेगा? ऐसे अनेक प्रश्न है, जिनका उत्तर मिले विना इस हत्या-कांड से उपजे आंदोलन को समाप्त नही होना चाहिए।
पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या एक सामान्य घटना नही है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संघर्ष को परिणाम तक पहुँचाने वाला वलिदान है। समग्र बिहार में इस घटना से उठा उफ़ान एक नयी क्रांति की दिशा में बढ रहा है। इसका एक स्पष्ट परिणाम आना चाहिए। राजदेव का वलिदान व्यर्थ नही जाएगा। यह घटना न केवल चिंता जनक बल्कि लोकतंत्र के लिए अत्यंत शर्मनाक भी है।
शोक-प्रस्ताव पर वाजा के उपाध्यक्ष बलभद्र कल्याण, एन एन गुप्त, आनंद किशोर मिश्र, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, गणेश झा, शंकर शरण मधुकर, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, संजय शुक्ल, अमरजीत शर्मा, अजीत कुमार, अंबरीष कांत, अभिजीत पाण्डेय, मोहन कुमार, सुरेश कुमार मिश्र, पंकज कुमार, कृष्ण कन्हैया तथा डा सुशील कुमार झा ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए शोक प्रकट किया।