जो लोग शिवानंद तिवारी के बारे में यह राय रखते हैं कि वह सुविधानुसार कभी लालू तो कभी नीतीश से जुड़ कर  ही राजनीति करते हैं अब उन्हें अपनी राय बदली होगी. अब वह इनमें से किसी के साथ  नहीं रहेंगे और न ही चुनाव लड़ेंगे

तिहत्तर के हुए तिवारी
तिहत्तर के हुए तिवारी

वरिष्ठ समाजवादी नेता ने अपने जीवन के 73 वें वर्षगांठ के अवसर पर यह परण लिया है कि अब न तो वह किसी राजनीतिक दल में जायेंगे और न ही बचे हुए जीवन में कभी चुनाव लड़ेंगे.

 

तिवारी अपना 73 वां जन्म दिन 9 दिसम्बर को मना रहे हैं.

गौरतलब है कि समाजवादी धारा के सुलझे हुए नेता माने जाने वाले शिवानंद तिवारी की कई बार इस बात के लिए आलोचना होती रही है कि वह सत्ता के लिए कभी लालू के करीब चले जाते हैं तो कभी नीतीश कुमार के संग खड़े हो जाते हैं.

शिवानंद तिवारी ने अपने बयान में लिखा है कि “काफी सोच-विचार कर मैंने तय किया है कि अब न कभी चुनाव लड़ूंगा और न किसी राजनीतिक दल में शामिल होऊंगा। लेकिन राजनीति से अलग नहीं रहूंगा. बहत्तर साल लम्बा समय होता है”.

लिख रहे हैं किताब

तिवारी ने फेसबुक पर लिखा है कि मैंने “अपने जीवन में बहुत कुछ बदलते देखा है. मैंने तय किया है कि अपने संस्मरणो के जरिये इस बदलाव की कहानी लिखूंगा. जीवन का अधिकांश मैंने राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप बिताया है. इस दौरान मैंने जो कुछ देखा, सुना और अनुभव किया है उसको ईमानदारी के साथ लिखने की कोशिश करूंगा”.

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के संग अपने लम्बे रिश्तों का उल्लेख करते हुए श्री तिवारी ने लिखा है कि “लोहिया विचार मंच और समता संगठन से हटने के बाद जब चुनाव की राजनीति में आया तो अब तक लालू और नीतीश के साथ ही रहा. इन दोनों के साथ बहुत पुराना रिश्ता रहा है.लालू से पचास-पचपन वर्षों का तो नीतीश से भी लगभग चालीस-बयालीस वर्षों से रिश्ता है लेकिन आज इन दोनों से अलग हूँ.या सच कहा जाय तो दोनों ने मुझे अपने से अलग कर दिया. मै उनकी परेशानी समझता हूँ. आज की राजनीतिक संस्कृति के अनुसार मैं अपने को ढाल नहीं पाया अतः इन दोनों के गले में अंटकता हूँ.

 

अपने करीबी लोगों में बाबा के नाम से मशहूर श्री तिवारी ने लालू और नीतीश क उल्लेख करते हुए लिखा है कि “मुझे इस बात का खेद है कि दोनों ने अपने अहं की वजह से अपना नुकसान तो किया ही समाज को भी इनसे जितना मिल सकता था वह नहीं मिला”.

By Editor

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