कपूर्री ठाकुर के शासनकाल में फरवरी 1980 में तत्कालीन गया जिले के जहानाबाद अनुमंडल अंतर्गत परसबीघा गांव में हुए चर्चित नरसंहार के मुख्य आरोपी विनय सिंह (67 वर्ष) को गुरुवार को शास्त्री नगर थाना क्षेत्र के एक फ्लैट से दबोच लिया गया। मूल रुप से जहानाबाद जिला के परसबीघा थाना के पंडुई गांव निवासी विनय सिंह वर्ष 2000 में उस समय फरार हो गए थे, जब सात दिनों के लिए बने नीतीश सरकार के समय उन्हें पन्द्रह दिनों के लिए पेरोल पर रिहा किया गया था। इस मामले को लेकर बाद के दिनों में नीतीश कुमार की भी काफी किरकिरी हुई थी।
विनायक विजेता
गौरतलब है कि फरवरी 1980 में हुए परसबीघा नरसंहार में 13 दलितों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 17 लोग गंभीर रुप से घायल हुए थे। इस मामले में कुल 56 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिनमें 44 लोगों के खिलाफ चार्चशीट दाखिल किया गया था। इनमें 37 लोगों को दोषी पाते हुए निचली अदालत ने दस-दस वर्ष की सजा सुनाई थी, जिस सजा के विरुद्ध सरकार की अपील पर हाइकोर्ट ने सबकी सजा आजीवन कारावास में बदल दी। जेल में इस मामले में बंद विनय सिंह वर्ष 1996 में जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, पर 31 अक्टूबर, 1996 को सुप्रीम कोर्ट के ए एस आनंद और के टी थॉमस की डबल बेंच की खंडपीठ ने विनय सिंह की जमानत याचिका को अस्वीकार कर दिया।
इसी बीच वर्ष 2000 में राजनीतिक जोड़तोड़ कर नीतीश कुमार की सरकार बनी। जेल में बंद विनय सिंह अपनी राजीतिक पहुंच का फायदा उठाते हुए 15 दिनों के पेरोल पर गया केन्द्रीय कारागार से बाहर आ गए और उसके बाद से अबतक फरार थे। सूत्र बताते हैं कि विनय सिंह इन दिनों रेलवे में कार्यरत अपने एक पुत्र के साथ रह रहे थे, जिसकी भनक एसएसपी मनु महाराज को लग गई और गुरुवार को उसे गिरफ्तार कर लिया गया। गौरतलब है कि परसबीघा कांड के 24 घंटे के अंदर दलितों ने बगल के गांव डोहिया कांड को अंजाम दिया, जिसका निशाना कई सवर्ण जाति की महिलाएं भी बनीं। बाद में यह जोरदार चर्चा हुई थी कि परसबीघा पहुंचे तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के इशारे और उकसावे पर डोहिया कांड को अंजाम दिया गया था।