प्रख्यात पत्रकार और सामाजिक विषयों के अध्ययेता पी. साईंनाथ ने कहा है कि अन्य किसी भी मोनोपोली से ज्यादा खतरनाक सोशल मीडिया कंपिनयों की मोनोपोली है। आज पटना में जनजीवनराम संसदीय शोध और अध्ययन संस्थान में करीब डेढ़ घंटे लेक्चर के बाद खास मुलाकात में कहा कि सोशल मीडिया वाले आपके पर्सनल डाटा ट्रैफिकिंग करते हैं। आपकी सेक्रेसी में सेंधमारी करती हैं। यह ज्यादा खतरनाक है।
महिमा तिवारी
पी साईंनाथ ने कहा कि मीडिया कॉरपोरेट हाउस में तब्दील हो गया है। सूचना और सूचना के माध्यमों पर उनका कब्जा है। इन माध्यमों पर मालिक के हित के अनुसार खबर लिखनी पड़ती है। लेकिन सोशल मीडिया लिखने की आजादी देता है। उन्होंने कहा कि किशोर और युवा सोशल मीडिया के प्रति ज्यादा आकर्षित हैं। हालांकि सोशल मीडिया के कंटेंट को लेकर असंतोष जताया। साथ ही उम्मीद जतायी है कि संभावनाओं का अंत नहीं है। श्री साईंनाथ पत्रकारिता से जुड़े अपने अनुभव भी सुनाए और इन अनुभवों से जुड़ी खबरों की गंभीरता पर भी फोकस किया। उन्होंने डिजीटल इंडिया की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
विवादों का कारण पानी
श्री साईंनाथ ने कहा कि भारत में कृषि संकट से गुजर रही है। किसानों की आत्महत्याएं चिंताजनक है। इसके अलग-अगल कारण हो सकते हैं। उसमें से जलसंकट भी बड़ी वजह है। आज कई राज्यों और देशों के बीच विवाद का प्रमुख कारण जल विवाद ही है। पानी का बंटवारा ही है। उन्होंने कहा कि भूमिगत जल का दोहन कृषि के साथ जीवन के समक्ष भी चुनौती खड़ा कर रहा है। श्री साईंनाथ ने बिहार की चर्चा करते हुए कहा कि यहां कैश क्रोप (नकदी फसल) की तुलना में खाद्य फसल (फूड क्रोप) अधिक होता है। फिर यहां जल की प्रचुरता है। यही वजह है कि बिहार में कृषि जल संकट के दौर में नहीं पहुंची है।
संवेदना का संकट
श्री साईंनाथ ने कहा कि खबरों के बाजार में संवेदना का संकट हो गया है। खबरें बाजार के लिए लिखी जा रही हैं। इसलिए संवेदना मरती जा रही है। खबरों का 90 फीसदी हिस्सा अपराध, राजनीति और मनोरंजन के हिस्से में चला जाता है। वैसी स्थिति में कृषि और कृषि संकट की समस्याएं हाशिए पर चली जाती हैं। उन्होंने पत्रकारिता की चर्चा करते हुए कहा कि आज किसी भी अखबार में ग्रामीण पत्रकार पूर्णकालिक नहीं हैं। जबकि सबसे ज्यादा पत्रकार ग्रामीण खबरों के लिए होते हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के विस्तार में ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वालों को पत्रकार माना ही नहीं जाता है। उन्हें इनफार्मर या सूचक भर कहा जाता है। यह भी एक प्रकार से मीडिया का संकट है।