8 नवम्बर को यह तय हो चुका होगा कि बिहार किसके हाथ में होगा पर फिलहल यह तय हो चुका है कि लालू-नीतीश की जोड़ी ने पीएम मोदी को अपने पहलवानी के अखाड़े में घसीट कर ट्रैप में ले लिया है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट इन
बिहार का 2015 चुनाव इस बात के लिए याद किया जायेगा कि बयानों के तरकश से नेताओं ने ऐसे-ऐसे जहरीले तीर चलाये हैं कि आम जनता ही नहीं चुनाव आयोग तक ने इन नेताओं को संयम बरतते हुए बयानबाजी करने की हिदायत दे डाली है.
ताजा मामला पीएम नरेंद्र मोदी के शैतान वाले बयान से है जिसमें उन्होंने इशारों में लालू प्रसाद के बारे में कहा कि उनकी लड़ाई शैतान से है. तो लालू भी कहा ठहरने वाले थे. लालू ने उन्हें नरपिशाच तक कह डाला और यह भी कहा कि पीली सरसों और मिर्च जला कर उसके धुंये से वह बिहार से नरपिशाच को भगायेंगे.
अब जबकि पहले चरण के चुनाव प्रचार आज खत्म हो रहे हैं और 12 अक्टूबर को 49 विधायकों के चुनावी भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद होने वाला है, कम से कम इतना तो तय हो चुका है पहले चरण में भाजपा आक्रमक होने के बजाये ज्यादा तर रक्षात्मक ही रही है.
इस चुनाव में अमूमन सब नेताओं ने बयानों की कड़वी गोली का इस्तेमाल किया. लेकिन गौर से देखें तो पिछले दो महीने से एनडीए के नेता, महागठबंधन के बयानों के तीरों के ट्रैप में ही रहे हैं. चुनावी घोषणा से पहले पीएम जब बिहार आये तो वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल खड़े कर के चले गये. तभी से भाजपा लगातार महागठबंधन के नेताओं के ट्रैप में रही है.
अपनों ने भी भाजपा को किया असहज
2014 लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा बयानों के आक्रमण के इतने ट्रैप में पहली बार आयी है. नतीजा यह हुआ है कि उसे या तो खामोश रहना पड़ा है या उसे सफाई देते बीत रही है. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि भाजपा खुद अपने ही नेताओं के ट्रैप में आ गयी और नतीजा यह हुआ कि उसे गहरी चुप्पी साधनी पड़ी. भाजपा सांसद आरके सिंह ने सार्वजनिक रूप से जब कहा कि पार्टी ने पैसे ले कर टिकट बांटे हैं तो उसके तीन दिन के भीतर सीवान जिले के विधायक विक्रम कुंवर ने दो करोड़ में शहाबुद्दीन के शूटर को टिकट बेचने का आरोप भाजपा के टाप नेतृत्व पर लगा दिया. इस अपमानजनक बयान से भाजपा खुद अपने ही जाल में एक हफ्ते तक उलझी रही. इसका भरपूर फायदा लालू प्रसाद ने उठाया और भाजपा पर आक्रमणों के तीर चलाने का कोई मौका नहीं गंवाया.
मोहन भागवत और आरक्षण
भाजपा इन या ऐसे ही अनेक गंभीर जख्मों पर महरहम पट्टी लगाती जबतक बैठे बिठाये आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने दलितों-पिछड़ों के आरक्षण पर पुनर्विचार करने वाले बयान दे डाले. इसका इतना व्यापक असर पड़ा कि एक तरह से भाजपा ने महागठबंधन को बयानों पर वाकअवर सा दे दिया. लालू ने इस पर धुंआधार आक्रमण शुरू किया और यहां तक कह डाला कि मां का दूध पिया है तो पिछड़ों का आरक्षण समाप्त करके दिखाओ.
लोकतंत्र में बातों का असर ही सबसे प्रभावशाली हथियार माना जाता है. लालू इसे बखूबी समझते हैं. और इस बयान को लालू ने उतना भंजाया जितना वह भंजा सकते थे. उन्होंने ऐलान कर दिया कि यह चुनाव अगड़े बनाम पिछड़ों का है. इससे वोटरों की भारी गोलबंदी के अनुमान लगाये गये. लालू ने अगड़ा बनाम पिछड़ा का नारा इसलिए भी लगा दिया क्योंकि उन्हें पता है कि अगड़े उन्हें वोट नहीं करने वाले.
बीफ के ट्रैप में लालू
लेकिन ऐसा नहीं है कि बयानों के तीर में हर बार लालू या महागठबंधन ने ही भाजपा को अपने ट्रैप में लिया. दादरी घटना के बाद बीफ के मुद्दे पर एक टीवी पत्रकार ने उनके बयान के एक हिस्से को एडिट करके जब दिखाना शुरू किया तो जबरदस्त हलचल मची और भाजपा को एक मुद्दा मिल गया. लगातार पांच दिनों तक लालू को बचाव की मुद्रा में रहना पड़ा लेकिन अचानक उस दिन पाशा पलट गया जब पीएम मोदी ने लालू की तरफ इशारा करके शैतान वाला बयान दे डाला.
लालू ने इसे दलितों और पिछड़ों से जोड़ा और कहा कि वह अपने वोटरों को बतायेंगे कि मोदी उन्हें शैतान कह रहे हैं. इसी भाषण में मोदी ने बीफ पर लालू के बयान को यदुवंशियों के अपमान से जोड़ने की कोशिश करके भी लालू के ट्रैप में आ गये.
अब जबकि पहले चरण के चुनाव प्रचार आज खत्म हो रहे हैं और 12 अक्टूबर को 49 विधायकों के चुनावी भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद होने वाला है, कम से कम इतना तो तय हो चुका है पहले चरण में भाजपा आक्रमक होने के बजाये ज्यादा तर रक्षात्मक ही रही है.
चुनावी रणनीति के लिहाज से भले ही भाजपा अंतिम दिनों में बालिवुड की ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी और अजय देवगन को ले कर कूदी हो पर कुल मिला कर उसके सबसे बड़े मात्र एक नेता लालू-नीतीश की आक्रमक चुनावी प्रचार की मजबूत काट पेश नहीं कर सके. इसकी एक वजह यह भी रही कि जहां नीतीश ने विकास, जैसे मुद्दे पर खुद को केंद्रित किये रखा तो वहीं लालू ने मोदी पर सीधा प्रहार जारी रखा. इन दोनों नेताओ ने भाजपा के किसी भी बिहारी नेताओं को निशाना बनाने या उनकी बातों का जवाब देने के बजाये सीधे नरेंद्र मोदी पर निशाना साधे रखा.
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