पहले जीतन राम और अब रमई राम प्रकरण  पर  बीजेपी  औंधे मुँह गिर पड़ी है. नवल शर्मा अपने विश्लेषण में बता रहे हैं कि इन दोनों नेताओं पर बीजेपी ने दलित राजनीति की जो चौसर बिछाई उसमें वह बुरी तरह मात खा गयी.bjp

मांझी प्रकरण से ही बीजेपी जिस तरह रणनीतिक भ्रान्ति में घिरी नज़र आ रही थी उसका अंजाम भी साफ़ साफ़ दिख रहा था . जीतन राम मांझी हों या रमई राम या कोई और दलित नेता , बीजेपी का उद्देश्य मात्र इतना था कि दलित सम्मान की दुहाई देकर दलित मतदाताओं में भ्रम पैदा किया जाए और जब दलित वोटों का छींका टूटे तो कुछ अंश बीजेपी की थाली में भी गिर जाए .पर एक तो समाज के दलित वर्ग को लेकर आरएसएस और बीजेपी का कलंकित ऐतिहासिक नज़रिया और ऊपर से मांझी के मुख्यमंत्रित्व काल में सुशील मोदी द्वारा मौके बेमौके की गयी राजनितिक प्रतिक्रियाएं , बीजेपी हास्य का पात्र बन गयी.

दलित विरोध के गर्भ से आरएसएस का जन्म

जिस आरएसएस का जन्म ही दलित विरोध के गर्भ से हुआ है , जो आरएसएस मनुस्मृति के हिसाब से समाज व्यवस्था के संचालन की हिमायत करता है , अम्बेडकर विरोध , आरएसएस के सांगठनिक ढांचे में दलितों की उपेक्षा, बाबरी मस्जिद ध्वंस और दंगों में दलितों का बलि के बकरे के रूप में इस्तेमाल , अनगिनत उदाहरण हैं जो दलित वर्ग के प्रति बीजेपी की अमानवीयता के प्रमाण के रूप में एक मोटे ग्रन्थ की रचना कर सकते हैं.

पूरे बिहार और देश ने देखा कि नीतीश कुमार ने किस तरह बिहार में दलित चेतना का जागरण किया और दलितों में आत्मसम्मान का भाव पैदा किया , पर मांझी ने केवल अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए उस दलित चेतना को घोर दलित विरोधी आरएसएस के चरणों में समर्पित कर दिया.

पहले मांझी फोर ट्वेंटी, अब विकास पुरुष 

मांझी जी का यह कदम राजनीतिक विश्वासघात का बड़ा ही कुरूप किस्म का क्लासिकल उदाहरण माना जायेगा. लेकिन सबसे आश्चर्यजनक पहलु रहा मांझी को लेकर बीजेपी का बार बार बदलता गिरगिटिया रंग. मेरी स्मृति ठीक ठाक है और मुझे याद है कि बीजेपी ने मांझी के कार्यकाल में ही जंगलराज -2 के नारे का अविष्कार किया था , मांझी को भ्रष्ट सीएम बताया था , गाँधी मैदान में भगदड़ के बाद मांझी को डमी बताया था और जब मांझी के दामाद का विवाद उभरा तो सुशील मोदी ने मांझी पर 420 के तहत मुकदमा दर्ज करने की माँग की थी और मांझी के दामाद को ट्रान्सफर- पोस्टिंग करनेवालों का सूत्रधार बताया था . और जब मांझी जी के साथ मंदिर धोने का विवाद उभरा तो सुशील मोदी जी की वह व्यंगात्मक भंगिमा अभी तक याद है कि मांझी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए अपने साथ भेदभाव का झूठा आरोप लगाते रहते हैं .और भी कई सारी घटनायें हैं . अब सोचिये जरा , कल तक जो मांझी बीजेपी की निगाहों में फोर ट्वेंटी थे, भ्रष्ट थे और न जाने क्या क्या थे , वही मांझी अचानक विकासपुरुष और सामाजिक न्याय का प्रतीक बन जाते हैं , दलित सम्मान का प्रतीक बन जाते हैं . क्या कहा जाए इसे , राजनीतिक अवसरवाद का बेशर्म गौरवीकरण? और जनता भी इतनी नासमझ कैसे हो सकती है. पूरे प्रकरण में बीजेपी की सत्तालोलुपता तो उजागर हुई ही , उसके रणनीतिक कौशल की भी भद पिट गयी.

देश ने कहा सीता-राम, भाजपा ने रटा रमई राम 

अब जरा आगे बढिए . कहावत है दूध का जला मट्ठा भी फूंक फूंक कर पीता है. पर बीजेपी तो अनोखी पार्टी है . पूरा देश भूकंप से सहमा हुआ था . सारे बिहारवासी भयभीत होकर सीताराम – सीताराम का जाप कर रहे थे , पर बीजेपी ने एक अलग ही जाप शुरू कर दिया –रमई राम –रमई राम. आपदा की इस घडी में नीतीश जी के जुझारू जज्बे को पूरे देश ने सलाम किया और अचानक बिहार को लगा कि उसका खोया हुआ सीएम उसे वापस मिल गया. बेहतर राहत प्रबंधन और समन्वय के लिए विजय चौधरी जी को रक्सौल का प्रभारी क्या बनाया गया , बीजेपी ने एक बार फिर दलित आत्मसम्मान का पिट चुका बेसुरा राग गाना शुरू कर दिया. पर यह आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गयी. किसी ने नोटिस नहीं लिया और यही इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि बीजेपी की बातों की विश्वसनीयता कितनी तेजी से क्षरित हो रही है. तुलसीदास कहते हैं – ‘’ संकट समय परखिये चारी धीरज, धर्म , मित्र अरु नारी ‘’ बिहारवासियों का धैर्यवान और धर्मप्रेरित मित्र कौन है , आपदा की इस घडी में बिहार ने देख भी लिया और समझ भी लिया!

नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं


navalनवल शर्मा  एक विनम्र राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ साथ राजनीतिक चिंतक के रूप में जाने जाते हैं. जद यू के आक्रामक प्रवक्ता रहे नवल मौलिक और बेबाक टिप्पणियों के लिए मशहूर हैं. अकसर न्यूज चैनलों पर बहस करते हुए दिख जाते हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.

By Editor

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