आज करीब दो महीने बाद मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी जनता दरबार सजा था। भीड़ भी काफी थी। प्रदेश के कोने-कोने से लोग आए थे। जनता दरबार के पहुंचने और मामले की सलटाने की प्रक्रिया वही पुरानी। मुख्यमंत्री के रूप में मांझी का यह पांचवां जनता दरबार था। मीडिया का मजमा, आश्वासनों का पुलिंदा और जीपीओ में डाकिया के तरह आवेदन बांटने में जुटे मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री कार्यालय के सभी वरीय अधिकारियों की मौजूदगी और बारी के इंतजार में बैठे अभ्यर्थी।
बिहार ब्यूरो प्रमुख
दरबार करीब 10 बजे शुरू हो गया था। सवा दस बजे मुख्यमंत्री भी पहुंच चुके थे। उससे पहले पुलिस, निबंध व भूमिसुधार विभाग के वरीय अधिकारी पहुंच चुके थे। दरबार में दो मंत्री भी मौजूद थे। निबंधन मंत्री अवधेश कुशवाहा और भूमि सुधार मंत्री नरेंद्र नारायण यादव। सर्वाधिक पुलिस विभाग के ही थे। कुछेक भूमि सुधार के तो कुछ निबंधन विभाग के फरियादी थे।
महिला आवेदकों के मामलों को सुनने के बाद मुख्यमंत्री विकलांग फरियादियों की ओर प्रस्थान किए। वहां करीब 50 फरियादी पहुंचे हुए थे। सबकी अपनी-अपनी समस्या और अपनी-अपनी अपेक्षा थी। इस दौरान एक फरियादी भोजपुरी में अपनी पीड़ा सुना रहा था। इस पर मुख्यमंत्री ने उसे भरोसा दिलाया- दरखास्त जाई तो काम हो जाई। पहले के दरबारों की अपेक्षा इस बार मांझी ज्यादा आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे थे। इसकी वजह थी कि विधानमंडल का मानसून सत्र निर्बिघ्न समापन और विधानसभा की दस सीटों के उपचुनाव में आशातीत सफलता। अपने विवादास्पद बयानों को लेकर चर्चा में रहे मांझी इस बात से आश्वस्त लग रहे थे कि ये बयान उनके जनाधार को पसंद आ रहा है और वह एकजुट भी हो रहा है।
जनता दरबार में मांझी का हाव-भाव और चेहरे की भाषा बता रही थी कि वह पहले से अधिक सहज महसूस कर रहे हैं। यही भाव इस बात का भी संकेत है कि प्रशासनिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप का असर कम होने लगा है और प्रशासन पर मांझी का दबाव बढ़ने लगा है।