गांधी मैदान में आमतौर पर रैली होती रहती है। पार्टियों से लेकर संगठन तक गांधी मैदान में पहुंच कर अपनी ताकत का अहसास कराते हैं। राहुल गांधी रैली करके गये तो अब नरेंद्र मोदी रैली करने आएंगे। 3 मार्च को भाजपा की रैली के बाद ही चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा होगी।
वीरेंद्र यादव
चुनावी वर्ष में पार्टी कार्यालयों में उम्मीदवारों की रैली शुरू हो गयी है। हर पार्टी कार्यालय और नेता के आवास पर उम्मीदवार चक्कर लगा रहे हैं। इस बार सत्तारूढ दल विधान सभा सदस्यों को टिकट देने के मूड में नहीं हैं। इसलिए विधान पार्षद ज्यादा उत्साहित हैं। विधानमंडल के पूर्व सदस्यों में खासा उत्साह है। खुले तौर पर कोई टिकट मांगने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन इच्छा को दबा भी नहीं पाते हैं। आज विधान सभा में तीन पूर्व और वर्तमान सदस्यों से मुलाकात हो गयी। हम उनके क्षेत्र के उम्मीदवारों के संबंध में चर्चा कर रहे थे तो पता चला कि तीनों ही टिकट के दौर में शामिल हैं। किसी और का नाम सुनने को तैयार नहीं हैं। आश्चर्य तो यह हुआ कि खड़े-खड़े बांका क्षेत्र से एक ही पार्टी के दो दावेदार जुट गये। हम तो समझते थे कि हमही उम्मीदवारी के फेर में घुम रहे हैं। यहां तो हर व्यक्ति ही उम्मीदवार है।
किसी भी गठबंधन में क्षेत्र और उम्मीदवार का फैसला अभी नहीं हुआ है। इसलिए हर क्षेत्र में दर्जनों दावेदार हैं। सभी अपने आप को योग्य और दूसरे को अयोग्य साबित करने में जुटे हैं। कोई जातिबल का हवाला दे रहा है तो कोई लाठीबल तो कोई लक्ष्मीबल का। कोई किसी से कम नहीं। सभी को पता है कि उम्मीदवार नेता के पेट से निकलने वाले हैं। लेकिन जो दिखेगा, वही बिकेगा। इसलिए फुदकते रहने में नुकसान क्या है। भाई राजनीति है। इसमें न अनिल शर्मा की कमी है और जेठमलानी की। जिस लोकतंत्र में पार्टियां ही बिकती हैं, तो उसमें उम्मीदवार या टिकट बिकने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।