टाइम्स नाऊ के पत्रकार अर्नब गोस्वामी द्वार पीएम नरेंद्र मोदी का इंटर्व्यू किये जाने और इस दौरान कोई गंभीर सवाल नहीं करने पर उनका सोशल मीडिया पर छीछा लेदर हो रहा है तो तुख लोग बचाओ में भी कूद गये हैं.
ध्यान रहे कि मोदी ने पीएम बनने के बाद किसी भी भारतीय पत्रकार को पहला इंटर्व्यू दिया है. आइए देखें इस बारे में किस ने क्या कहा.
अरविंद केजरीवाल
पीएम मोदी का इंटरव्यू प्रसारित होने के बाद केजरीवाल ने अपने ही एक पुराने ट्वीट को रीट्वीट कर यह सवाल किया कि अरनब गोस्वामी पत्रकार हैं या मोदी के प्रचारक?
piyabhanshu Ranjan : एक इंटरव्यू अर्णब ने किया, जिसे पूरी भगवा ब्रिगेड सोशल मीडिया पर शेयर करते नहीं थक रही। एक इंटरव्यू करण थापर ने किया था, जिसमें मोदी को पहले पीना पड़ा था और फिर बीच में ही भागना पड़ा था। इसी इंटरव्यू के बाद मोदी दमखम वाले पत्रकारों के सामने आने से कतराते हैं। बहरहाल, असल इंटरव्यू तो करण थापर वाला ही माना जाएगा। अर्णब तो अपने स्वामी की सेवा कर रहे थे!
Mithilesh Priyadarshy : इंटरव्यू के दौरान अर्णब गोस्वामी सर्कस के ठीक उस शेर की तरह नज़र आया, जो यूं तो पिंजड़े से दहाड़कर, पंजे मारकर, गुर्राकर दर्शकों को लगातार डराता रहता है, पर जैसे ही रिंग मास्टर की इंट्री होती है, वह किसी पालतू कुत्ते की तरह चुप मारकर देह और दुम हिलाकर प्यार जताने लगता है.
Vimal Kumar : टीवी पर शेर की तरह दहड़नेवाले पत्रकार आज खामोश थे। महंगाई के मुद्दे पर साहब का काउंटर ही नहीं किया। आज वे गोले की तरह दाग नहीं रहे थे सवाल। जबाव भी चतुराई से दिए जा रहे थे यह थी निष्पक्ष पत्रकारिता।
संतोष कुमार दूबे-
कुछ लोग निराश हैं कि नरेन्द्र मोदी जी का इंटरव्यू लेते समय अर्नव गोस्वामी दबंग, आक्रामक और झपेटामार क्यों नहीं दिखे; …मोदीजी से ‘दो हाथ ऊपर’ क्यों नहीं दिखे। वे निराश हैं कि अर्नव कोई हेडलाइन क्यों नहीं निकाल पाए।
उनके हिसाब से विद्वान् का घमंडी और बड़बोला होना जरूरी है। उनका दृढ़ विश्वास है कि पत्रकार होने से आदमी ‘निरंकुश’ और ‘सर्वज्ञ’ हो जाता है। फिर चाहे राजनीति में तीस साल खप-खपकर, घिस-घिसकर बना प्रधानमंत्री हो या कल्लू कलवारी, — खिंचाई बहुत जरूरी है। …जबतक किसी की धोती नहीं उतारी, पत्रकार काहे का।
पत्रकार का काम है, विश्वसनीय तरीके से उपयोगी सूचनायें निकाल कर जनता को उपलब्ध कराना; न कि चैनल पर दंड पेलना। आज भी, बिना ढोल बजाये, लाखों पत्रकार यह काम बखूबी कर रहे हैं। लेकिन उस मुख्यधारा को कुछ लोग खुद से कम महत्तवपूर्ण मानते हैं।
ये वही लोग हैं, जिनकी चिदम्बरम् साहब के सामने घिग्घी बँध जाती थी और माननीय सोनिया जी के तो पी.ए. से भी मिलने का अपॉयन्टमेंट नहीं मिल पाता था। ये वही लोग हैं जिन्होंने भारतीय मीडिया को ‘रामसे ब्रदर्स’ की फिल्मों में बदल दिया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें।
अमित कुमार
पहली बार अर्नब गोस्वामी शांत, स्थिर दिख रहे थे। उनकी तबियत ठीक थी? वह पहली बार सामने वाले को बारम्बार शुभकामना दे रहे थे, विदेश नीति पर सवाल से पहले सफलता का सर्टिफिकेट, ऐसे में सवाल की हैसियत का अहसास हो जाना चाहिए! आर्थिक स्थिति पर सवाल पूछे जाने से पहले वैश्विक कठनाईयां गिनाते हुए 7.5 प्रतिशत के विकास दर की बधाई देने के बाद प्रश्न कैसा होगा?
पाकिस्तान से संबंधित सवाल से पहले पाक के साथ अनकंप्रोमाइजिंग एटिट्यूड रखने का प्रमाण पत्र देने के बाद सवाल पूछना, भ्रष्टाचार पर सवाल से पहले दो वर्ष में कोई बड़ा स्कैम न होने तथा मज़बूत नियंत्रण का सर्टिफिकेट (यहां ध्यान रखने की बात है यूपीए प्रथम के पूरे कार्यकाल में कोई घोटाला सामने नहीं आया था). इतना शालीन अर्नब पहली बार! एक बार भी इंडिया वांट्स टू नो का उच्चारण नहीं! एक बार भी चिल्लाकर देशद्रोही नहीं कहा! अर्नब एक पीआर एक्सरसाइज़ कर रहे थे या, एक नेता के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे थे?
Amish Srivastava ‘ मोदी – अर्नब ‘ इन्टरव्यू में, मैं या कोई भी ये नहीं सोच रहा कि अर्नब चिल्लाए क्यों नहीं ? शालीनता से बात क्यों की या हेडलाइन क्यों नहीं निकाल पाये ? बल्कि ये कि जो नरेंद्र मोदी किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए मशहूर हैं, जो मीडिया के सामने धाकड़ हैं, जो किसी भी कड़े से कड़े जर्नलिस्ट के किसी भी सवाल पर छक्का जड़ सकते हैं, उनके सामने इस तरह लल्लो चप्पों टाइप बातचीत से अच्छा उन्ही वाक्यों को सवाल के रूप में रक्खा जाता ! कुछ ऐसे सवाल भी रखे जाते जिनका जवाब ज़रूरी है । वो दे देते और ग़ज़ब देते !
धोनी अच्छा खेल रहे हैं या नहीं, ये परखने के लिए बॉल उन्ही को तो नही थमा देंगे न कि ख़ुद उछालें और ख़ुद मारें ताकि वो कम्फ़्टर्बल तरीक़े से छक्के लगाएँ और हम तालियाँ बजाएँ ? यकीन मानिये उन बॉल्स पर लगे छक्कों में भी मज़ा नहीं आएगा और आप कहें कि संतुष्ट हुए कि नहीं ? ऐसे में धोनी का कोई अंधभक्त ही होगा जो ये निष्कर्ष निकालेगा कि वाह बन्दा गज़ब खेलता है !
सवाल अर्नब की इज़्ज़त से ज़्यादा नरेंद्र मोदी की इज़्ज़त का भी है ? लप्पा बॉल से उनके जवाब देने का धारपन और हुनर भी कहाँ पता चलेगा ? लग रहा था अर्नब नरेंद्र मोदी नहीं मनमोहन सिंह से बात कर रहे हों ! ऐसी संगत और पेशकश हुनरमन्द को भी कमज़ोर बना देती है । इसीलिए इस इन्टरव्यू के बाद रतनजीत सिंह जैसे कई मित्रों को मोदी कमजोर होते ही दिखे ! शेयर किया है, पढ़ें !
बाकी आप चाहते हैं तो लिख देता हूँ ! बहुत बढियां शो था
वैसे ‘ कुछ धमाकेदार हो जाए ‘ वाक्य नरेन्द्र मोदी का है ! अरुण शौरी ने बताया था कि मोदी जी इसे बीजेपी मीटिंग में इस्तेमाल करते हैं ! गूगल करें !😀