प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सदस्य एवं अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव अली जावेद ने एक कार्यक्रम में अफज़ल गुरु के समर्थन में तथा भारत विरोधी नारे लगने की घटना पर क्लब के कारण बताओ नोटिस के जवाब में आज कहा कि उन्होंने उस आयोजन में न केवल नारेबाजी बल्कि विघटनकारी ताकतों के विचारों का भी कड़ा विरोध किया था।
गत दस फरवरी को प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों ने आतंकवादी अफजल गुरु और मकबूल भट को शहीद बताते हुए उनके समर्थन में तथा भारत के खिलाफ नारे लगाये गए थे। श्री जावेद ने अपने जवाब में कहा है कि जाकिर हुसैन कॉलेज में प्रोफेसर एस. ए. आर. गिलानी उनके कुछ वर्षों से परिचित हैं और उन्होंने कश्मीर पर एक कार्यक्रम करने के लिए दस फरवरी को हाल बुक कराने का अनुरोध किया था। उन्होंने उन पर विश्वास करते हुए हाल बुक करा दिया था। उस कार्यक्रम के लिए प्रोफेसर विजय सिंह, तृप्ता वाही और निर्मालांशु मुख़र्जी को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन जब कार्यक्रम शुरू हुआ तो वहां मौजूद कश्मीरी छात्रों ने उसे अफज़ल गुरु और मकबूल भट की स्मृति सभा में बदल दिया और इन दोनों को शहीद बताते हुए नारेबाजी भी शुरू कर दी। इन लोगों ने उनके पोस्टर भी लगाये।
श्री जावेद ने कहा कि ऐसे में मेरे पास दो ही विकल्प थे या तो वह समारोह का बहिष्कार करते या फिर उसमें रहकर उनके खिलाफ बोलते। उन्होंने बोलना उचित समझा और आयोजन में कहा कि अफजल गुरु और मकबूल शहीद या निर्दोष नहीं थे। साथ ही उन्होंने कहा कि कश्मीर की समस्या को कश्मीरी मुसलमानों का मुद्दा बनाकर तथा पृथकतावादी विचारधारा से नहीं सुलझाया जा सकता। इसके बाद भी कश्मीरी युवक भारत विरोधी नारे लगाते रहे, जिसका उन्होंने और प्रोफेसर विजय सिंह, प्रोफेसर तृप्ता वाही तथा प्रोफेसर मुख़र्जी ने विरोध किया और उन्हें रोकने की कोशिश की और यह जारी रहने पर प्रेस क्लब के स्टाफ ने उन लोगों को वहां से भगाया।