एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने अपने निजी सर्वे में लोगों से पूछा था कि ‘पुलिस’ का नाम सुनते ही उनके मन में क्या ख्याल आता है. इस सर्वे के नतीजे क्या कहते हैं पढिये और अपने ख्याल भी बताइए.
सर्वे के मुताबिक 94 प्रतिशत लोग पुलिस का नाम सुन कर उनके खिलाफ राय बनाते हैं इनमें खुद पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं.
यह निजी सर्वे उत्तर प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिये किया है. इस सर्वे में आम लोगों के अलावा कई आईपीएस अधिकारी, पत्रकार और नामी कारोबारियों ने भी हिस्सा लिया.
सर्वे में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि कुछ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी भी मानते हैं कि पुलिस का नाम सुनते है उनके मन ‘बेईमानी’ और ‘बदतमीजी’ का ख्याल आता है.
558 लोगों की राय
“पुलिस शब्द सुन कर आपके मन में कौन सा ख्याल आता है?” इस पर 558 जवाब आये. इनमे सबसे अधिक 61 लोगों ने कहा कि पुलिस शब्द सुनते उनके मन में भय या डर का भाव आत है जबकि 42 उसे भ्रष्ट या भ्रष्टाचार से जुड़ा मानते हैं.
25 लोगों ने कहा कि पुलिस का मतलब सरकारी या वर्दी वाला गुंडा होता है जबकि 14 इसे खौफ या आतंक से जोड़ते हैं. 18 लोगों ने इसे चोर शब्द से जोड़ा. 9 के लिए यह शब्द घूस से जुड़ा है, 5 के लिए हफ्ता से और 7 के लिए डंडा से.
जो अन्य शब्द लोगों ने बताये उनमे ठुल्ला, मुसीबत, शामत, कहाँ फंस गया, वर्दी के आड़ मे छिपा शैतान, शिकारी, बदतमीज, 20 रुपये वाला भिखारी, नेताओं की कठपुतली, खुदा खैर करे, अमीरों का टट्टू, यमराज, स्यापा, जुल्मी, हाईटेक चोर आदि शामिल थे.
एक ने मॉडल पूनम पाण्डेय को उद्धृत किया कि पुलिस तालिबान से भी बुरी है तो मुंबई के कमल शाह को यह शब्द हिटलर की याद दिलाता है.
6 प्रतिशत लोग पुलिस के साथ
केवल 37 (लगभग 6%) लोगों के मन में इस शब्द के प्रति कोई दुर्भावना नहीं दिखी.
इनमे 20 को इस शब्द से सुरक्षा, मदद आदि की भावना जगती है जबकि 9 को पुलिसवालों और उनके कठिन जीवन के प्रति गहरी संवेदना दिखी, जिनमे 2 ने आमिर खान की सत्यमेव जयते को पुलिस के प्रति धारणा बदलने का कारण बताया. इनमे 7 पुलिस को खाकी से जोड़ते हैं और एक अन्य इसे विनोद खन्ना की फिल्म सत्यमेव जयते से.
वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण के लिए यह शब्द गरीबों पर अत्याचार का पर्याय है, आर्थिक पत्रकार सुचेता दलाल के लिए भय और भ्रष्टाचार की चिंता का, एसआरएफ कंपनी के मालिक अरुण भरत राम के लिए अयोग्यता का, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता शिशिर ढोलकिया के लिए भय का और पीयूसीएल के पूर्व महासचिव पुष्कर राज पुलिस शब्द सुनते ही उनके दिल में गंदे कपड़े पहने थके हुए व्यक्ति का ख्याल आता है.
देखने योग्य बात यह है कि डीजी रैंक के आईपीएस अफसर प्रवीण सिंह और विजय कुमार भी इस शब्द को बेईमानी और बदतमीजी से जुड़ा मानते हैं.
अमेरिका और यूरोप में रहने वाले भारतीय पुलिस के प्रति बेहतर भाव रखते दिखे और इसे सुरक्षा और मदद से जोड़ कर देखा. एक ने कहा कि पुलिस अभी भी तमाम विभागों से अधिक ईमानदार है जबकि दुसरे को यह शब्द सुनते ही सुधार की बात मन में आती है.
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