पैगम्बर ए इस्लाम विभिन्न मतावलम्बियों के साथ शांति व सहअस्तित्व के हिमायती थे

 अतिवाद और उग्रवाद अकसर हिंसा का कारण बनते हैं, जिनसे शांति एवं सद्भावना खतरे में पड़ जाती है. इसलिए इस्लामिक विद्वानों, उलेमा और समुदाय के नेताओं को इस पर सकारात्मक  हस्तक्षेप और विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है.

 

वास्तव में पैगंबर ने बहुलवाद प्रजातंत्र और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का समर्थन किया था जिसे अलसलफ  दारुल इस्लाम बार-बार प्रमाणित करते हैं. हिंसा और घृणा का  प्रचार अतिवादियों और आतंकवादी द्वारा निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जा रहा है.

Also Read- कुरआन किसी खास नस्ल नहीं बल्कि पूरी इंसानियत से मोहब्बत का पैगाम देता है

पैगंबर ने खुद को शांति एवं सद्भावना के लिए वक्फ किया था जो उनके द्वारा की गयी  पहल जैसे बहुलतावाद और वैश्विक भाईचारे के उद्देश्य से हुदैबिल्लाह मिश्क ए मदीना के बीच समझौता से प्रमाणित है. एक सच्चा मुसलमान किसी  अन्य से या गैर मुस्लिमों पर कभी भी अत्याचार तथा मानव अधिकारों का उल्लंघन नहीं करेगा.

Also Read- Prophet Mohammad के नवासे इमाम हसन का सत्तात्याग व सुलह मानव इतिहास की अद्भुत घटना

मुस्लिमों के साथ साथ सभी गैर मुस्लिम भी मदीना में पूरी सुरक्षा धार्मिक स्वतंत्रता और प्रजातंत्र अधिकारों के साथ रहते थे. वास्तव में अतिवादी और आतंकी संगठन पैगंबर के धर्मनिरपेक्ष\ प्रजातांत्रिक शासन पद्धति  की  नीव को धृष्टतापूर्वक कमजोर करते हैं. जबकि भारतीय मुस्लिम उक्त मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध है और सभी पंथों और सिद्धांतों के  लोगों के साथ अध्यात्मिक सामंजन पर  केंद्रित समावेशी  व धार्मिक व्याख्यान के पक्षधर  हैं.

Also Read- इस्लाम में महिला अधिकारों के प्रति नकारात्मक धारणा को समाप्त करने की जरूरत

सरकार को चाहिए कि वह अतिवादी इस्लाम और हिंसा के समर्थकों के खिलाफ खिलाफा अल अरबिया, वैश्विक इस्लामी खलीफा और गैर मुस्लिमों के साथ साथ टकराव पैदा करने वालों के खिलाफ कड़ा कदम उठाए.  इस तरह के गलत लोग व्यक्तिगत आजादी, धार्मिक स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र तथा सर्वमुक्तिवाद के विरोधी होते हैं.

Also Read- मुसलमानों के प्रति क्यों नकारात्मक रवैया अपनाता है मुख्यधारा का मीडिया?

इसलिए धार्मिक राजनीतिक नेताओं तथा  बुद्धिजीवियों और मुसलमानों द्वारा इन का प्रतिकार एवं निंदा की जाए. ऐसी स्थिति में उपयुक्त व्याख्यान तथा इन तत्वों के साहित्य शास्त्रों पर प्रतिबंध की जरूरत है जिनमें इस्लामिक धर्म ग्रंथों को अतिवादी और उग्रवादी विचारधारा के  साथ मिला दिया गया है.

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427