गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाशोत्सव ने बिहारी सत्कार की ऐसी लकीर खीची कि भविष्य में किसी भी भव्य उत्सव की बात होगी तो उसकी तुलना में कहा जायेगा कि अमुक आयोजन प्रकाशोत्सव जैसा था या उससे कितना अलग था. लेकिन इसमें सियासी कपट भी दिखी.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
यह नजीर इसलिए भी दी जायेगी कि देश के किसी राज्य का कोई सिख मुखय्मंत्री ( पंजाब) प्रकाश सिंह बादल जब यह कह रहे हों कि बतौर मुख्यमंत्री अगर प्रकाशोत्सव की जिम्मेदारी उन्हें दी गयी होती तो भी इतना शानदार आयोजन वह नहीं कर पाते. इतना ही नहीं जब प्रकाश बादल यह कह रहे हों कि सिखों के उत्सव के इतिहास में 350वें प्रकाशोत्सव का नाम तब तक लिया जायेगा जब तक सिखों का इतिहास (इस धरती पर) रहेगा. एक सिख श्रद्धालु का यह उद्गार बिहार और बिहारियों के लिए गर्व की बात है. बिहार ने इस आयोजन में कितनी संवेदनशीलता, कितना समर्पण, कितना संसाधन लगाया इस पर कुछ भी कहने की तब जरूरत नहीं रह जाती जब इसकी सफलता के किस्से पंजाब से कनाडा तक सुने सुनाये जा रहे हों. लेकिन!
कुछ तो पर्दादारी थी
लेकिन कुछ तो है जिसकी पर्दादारी थी. कुछ तो है जो इस उत्सव के पीछे एक रणनीति का हिस्सा था. अगर मीडिया का कुछ हिस्सा यह चर्चा कर रहा हो कि प्रकाशोत्सव के कार्यक्रम में लालू प्रसाद और उनके दोनों पुत्रो को फर्श पर बिठाया गया तो यह हमारी नजर में कोई चिंता की बात नहीं थी. मंदिरों, मस्जिदों या गुरुद्वारों में फर्श पर बैठना भी गर्व के साथ आत्मीयता श्रद्धा की ही बात होती है. पर यह तब, जब मंच पर बैठे लोग भी कुर्सियों पर नहीं बल्कि मंच के फर्श पर ही बिठाये जाते. लेकिन समस्या सिर्फ यहां तक ही सीमित नहीं थी.
बात यह थी
बात यह थी कि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख से ले कर, प्रकाश सिंह बादल तक और आम जन से ले कर पीएम नरेंद्र मोदी तक ने इस भव्य आयोजन के लिए बिहार सरकार(नीतीश कुमार) की तारीफ की तो नीतीश कुमार ने इस तारीफ का सेहरा अपनी टीम को के सर बांध डाला. लेकिन उनकी इस टीम में कोई मंत्री शामिल नहीं था. कोई नेता शामिल नहीं था. अगर कोई शामिल था तो जूनियर से ले कर सीनियर नौकरशाहों की टीम. नीतीश कुमार ने भरे सभागार में इस उत्सव को कामयाब करने में भूमिका निभाने वालों का नाम गिन-गिन कर बताया. उन्होंने बताया कि इस आयोजन की सफलता के लिए उन्होंने जीएस कंग को पंजाब से बुलवाया. जीएस कंग कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुख्य सचिव हुआ करते थे. अब रिटायर हो कर पंजाब में रहते हैं. नीतीश कुमार ने इस सफल आयेजन के लिए कला व संस्कृति विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद का नाम लिया लेकिन विभाग के मंत्री शिव चंद्र राम का जिक्र नहीं किया. नीतीश ने पर्यटन मंत्री अनीता देवी का कोई जिक्र नहीं किया लेकिन विभाग की प्रधान सचिव हरजोत कौर की भूमिका की सराहना की. इसी तरह उन्होंने डीआईजी सालीन का जिक्र किया. और बताया कि उन सबने बड़ी समर्पण से मेहनत की. सीएम यहीं नहीं रुके .उन्हों पटना के डीएम संजय अग्रवाल की तारीफ की. यहां तक कि उन्होंने एसएसपी मनु महाराज की भूमिका की प्रशंसा की और कहा कि उन्होंने तो इतने दिनों में इतने पंजाबी भाइयों से मिले कि उन्होंने पंजाबी तक बोलना सीख लिया.
विधायिका बनाम कार्यपालिका- नया ढाल
लेकिन इस आयोजन में जिस एक विभाग ने सड़कों को सजाया-संवारा उस विभाग के मंत्री का तो छोड़िये, पथ निर्माण विभाग के सचिव तक का नाम नहीं लिया. और यही वह बिंदु है जो यह इशारा करता है कि नीतीश सरकार ने इस भव्य आयोजन के लिए जिस टीम स्प्रीट की बात की उस टीम स्प्रीट के पीछे दरिया दिली नहीं थी. पथ निर्माण विभाग तेजस्वी यादव के जिम्मे है. यह सच है कि ब्योरोक्रेसी ही राजनीतिक नेतृत्व के फैसले को जमीन पर उतारती है. पर फैसले राजनीतिक नेतृत्व के स्तर पर लिये जाते हैं इसलिए सफलता या विफलता का सारा श्रेय कभी सिर्फ नौकरशाहों के सर नहीं बांधे जाते. अगर सफलता का सेहरा नौकरशाहों के सर बांधे ही गये तो नीतीश कुमार को यह कहना चाहिए था कि इस सफल आयोजन में उनकी भी कोई भूमिका नहीं थी. वह चाहते तो कह सकते थे कि उनके मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह केे सफलल नेतृत्व से यह आयोजन सफल हुआ.
इसलिए इस आयोजन में लालू प्रसाद या किसी दीगर नेता का फर्श पर बैठना बहुत बड़ी बात हो न, न हो. पर यह जरूर बड़ी बात है कि एक राजनीतिक नेतृत्वकर्ता के रूप में नीतीश कुमार ने प्रकाशोत्सव की सफलता का सेहरा अपनी जिस टीम के सर बांधा उसमें राष्ट्रीय जनता दल के कोटे वाले विभाग का कोई नौकरशाह भी शामिल नहीं था. मंत्री तो था ही नहीं.
नीतीश कुमार के इस व्यवहार को राष्ट्रीय जनता दल ने किस तरह से ग्रहण किया, यह तो वही जाने पर जनता ने जो संदेश ग्रहण किया वह कुछ और ही है.