यौन शोषण का ऐसा मामला विरले ही सामने आता है कि महिला डीएसपी बाजाब्ता प्रेस कांफ्रेंस करें और बतायें कि एसपी ने उनका यौनशोषण किया.
भभुआ की डीएसपी निर्माला कुमारी दस वर्षों की पुलिसिंग का अनुभव रखती हैं. इन दस वर्षॆं में उन्होंने दर्जनों ऐसे मामले खुद ही देखी और जांची होंगी जिसमें महिला पुरुष पर आरोप लगाती हैं कि उनका यौन शोषण हुआ.
सवाल यह है कि ऐसे अनुभवों से निर्माला ने क्या सीखा. सोमवार को उन्होंने पत्रकारों को बुलाया और ऐलान किया कि जिले के एसपी पुष्कर आनंद ने शादी के झांसे में उनका यौन शोषण किया. हालांकि पुष्कर इस बात को बेबुनियाद बता रहे हैं. अगर निर्मला की बात सच है तो यह संगीन मामला है.
इसकी जांच होनी चाहिए और अगर एसपी दोषी हैं तो कार्रवाई भी होनी चाहिए. पर सवाल यह है कि एसपी ने निर्माला को झांसा दिया और वह नहीं समझ पायीं तो यह बात आसानी से समझ नहीं आती. क्योंकि निर्माला प्रशासनिक अफसर हैं और दुनिया की चाल को अच्छी तरह समझने का माद्दा रखती हैं.
निर्मला 205 बैच की बीपीएस है. पुष्कर 2009 बैच के आईपीएस हैं. दोनों अविवाहित हैं. यह बात दोनों जानते हैं. ऐसे में इस विषय पर कुछ भी तुक्केबाजी करना ठीक नहीं लेकिन यह तो तय है कि मामले के अंदर कुछ न कुछ तो है. निर्मला ने इस मामले को यौन शोषण करार देते हुए एफआईआर करायी है. डीजीपी पीके ठाकुर खुद आगे आकर जांच का हुक्म दे चुके हैं. अब हमें इंतजार करना चाहिए कि जांच का परिणाम क्या होता है.
लेकिन यह सवाल तो जरूर उठेगा कि निर्मला एक आला अफसर हैं और उनका शोषण यूं ही कोई करे और वह खामोश सहती रहें यह कैसे हो सकता है. उनके पास पावर है. अपनी आवाज उठाने को वह स्वतंत्र हैं. तो आखिर वह पहले क्यों खामोश रहीं? अगर उनके संग अन्याय हुआ है तो यह प्रशासनिक तंत्र पर गंभीर सवाल है क्योंकि एक आला अफसर जब शोषण का शिकार हो सकती हैं तो आम महिलाओं का क्या होगा.
सवाल यह भी है कि आखिर निर्मला को प्रेस कांफ्रेंस करके अपने शोषण के खिलाफ आवाज क्यों उठानी पड़ी. क्या उन्हें यह लगने लगा है कि सिस्टम के अंदर उनके संग इंसाफ नहीं हो सकता. इसलिए इस शोषण के खिलाफ आम लोगों को सूचित करके उनकी सहानुभूति उठाई जाये?
इन तमाम सवालों के सही जवाब सिस्टम को देना होगा.
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