बिहार में अचानक बढ़े अपराध को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चिन्ता बढ़ गई है और उन्होंने राज्य के आला अधिकारियों को एक सप्ताह में लगाम लगाने का आदेश जारी किया है.
विनायक विजेता
यह कितना हास्यास्पद है कि मुख्यमंत्री के ही एक करीबी सांसद जिनके इशारे पर एसपी और अन्य वरीय अधिकारियों की तैनाती मलाईदार जगहों पर की जाती रही है और मुख्यमंत्री खुद उस फाइल पर अपनी मंजुरी देते हैं पर लगाम लगाए जाने के बदले पुलिस के वरीय अधिकारियों पर अपनी भडास निकाल रहें हैं.
इस राज्य का यह आलम है कि वर्तमान में राज्य के 3 रेल जिलों सहित 12 जिलों में प्रमोटेड आईपीएस का जिले के एस पी के रुप में तैनाती है. ये सभी इनमें अधिकतर वैसे एसपी हैं जो 2016 तक अवकाश ग्रहण करने वाले हैं.
जिन प्रमोटेड एसपी के हाथों जिलों की कमान है उनमें विनोद कुमार चौधरी (गोपालगंज), असगर इमाम (कटिहार), वरुण कुमार सिन्हा (समस्तीपुर), सौरभ कुमार (मुजफ्फरपुर), अजीत कुमार सत्यार्थी (सहरसा), मो. अख्तर हुसैन (अररिया), सुरेश चौधरी (वैशाली), बीएन झा (ग्रामीण एसपी,पटना), पंकज सिन्हा (सीतामढी), आनंद कुमार सिंह (अरवल), शेखर कुमार (नौगछिया), कुमार एक्लव्य (सिटी एसपी, मुजफ्फरपुर), शिवकुमार झा (खगडिया) सहित जीतेन्द्र मिश्रा (रेल एसपी, कटिहार) व उपेन्द्र कुमार सिन्हा (रेल एसपी, पटना)के नाम शामिल हैं.
बिहार में कड़क और ईमानदार छवि वाले कई ऐसे डाइरेक्ट आईपीएस अधिकारी हैं जिन्हें सरकार ने वर्षों से संटिंग पोस्ट पर डाल रखा है.
पिछले दिनों एक थानाप्रभारी द्वारा घूस की राशि के साथ निगरानी द्वारा पकड़े जाने पर एक पुलिस अधिकारी की यह प्रतिक्रिया लाजिमी ही थी कि अगर मलाईदार थानों और जिलों में पोस्टिंग के लिए भारी-भरकम राशि ली जाती हो तो उस राशि की पूर्ति के लिए संबंधित अधिकारी घूस नहीं लेंगे तो क्या अपनी पैतृक संपत्ति बेचेंगे.