इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर में जिस तरह से गुजरात पुलिस के बड़े अधिकारियों पर शिकंजा कस चुका है उससे यह आशा जगी है कि पुलिस वाले फर्जी एनकाउंटर करने के पहले बार बार सोचेंगे.
शेष नारायण सिंह
गुजरात में हुए इशरत जहां के फर्जी इनकाउंटर केस में सी बी आई ने पहली चार्जशीट दाखिल कर दिया है. आरोपपत्र में लिखा है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो और गुजरात पुलिस ने मिलकर फर्जी इनकाउंटर को अंजाम दिया था और पुलिस की कस्टडी में पहले से ही लिए जा चुके लोगों को साजिशन मार डाला .
मामला मुंबई की एक लडकी इशरत जहां का है जिसे गुजरात पुलिस के बड़े अधिकारी डी जी वंजारा ने तथाकथित आतंकियों के साथ अहमदाबाद में जून 2005 में फर्जी मुठभेड़ में मार डाला था. एनकाउंटर के बाद बताया गया कि इशरत जहां चार लोगों के साथ अहमदाबाद जा रही थी और उन लोगों का इरादा मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना था .लेकिन इशरत जहां की माँ पुलिस की इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि उनकी लड़की आतंकवादी है .
मामला अदालतों में गया और सिविल सोसाइटी के कुछ लोगों ने उनकी मदद की और जब सुप्रीम कोर्ट की नज़र पड़ी तब जाकर असली अपराधियों को पकड़ने की कोशिश शुरू हुई . न्याय के उनके युद्ध के दौरान इशरत जहां की मां , शमीमा कौसर को कुछ राहत मिली जब गुजरात सरकार के न्यायिक अधिकारी, एस पी तमांग की रिपोर्ट आई जिसमें उन्होंने साफ़ कह दिया कि इशरत जहां को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया था और उसमें उसी पुलिस अधिकारी, वंजारा का हाथ था जो कि इसी तरह के अन्य मामलों में शामिल पाया गया था.
मीडिया का एक वर्ग गैरजिम्मेदार
एस पी तमांग की रिपोर्ट ने कोई नयी जांच नहीं की थी, उन्होंने तो बस उपलब्ध सामग्री और पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट के आधार पर सच्चाई को सामने ला दिया था. इशरत जहां के मामले में मीडिया के एक वर्ग की गैर जिम्मेदाराना सोच भी सामने आ गयी थी. अपनी बेटी की याद को बेदाग़ बनाने की उसकी मां की मुहिम को फिर भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था में विश्वास हो गया. एस पी तमांग की रिपोर्ट आने के बाद इशरत जहां की माँ ,शमीमा कौसर ने बहुत कोशिश की . निचली अदालतों से उसे कोई राहत नहीं मिली . शमीमा कौसर ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार की और देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला आया तब जाकर इशरत जहां केस के फर्जी मुठभेड़ से सम्बंधित सारे मामलों की जांच शुरू हुई .
सी बी आई की मौजूदा चार्ज शीट उसी प्रक्रिया का नतीजा है.
चार्जीशीट के तथ्य
चार्जशीट में जो बातें सामने आयी हैं , वे सरकार की मंशा और पुलिस वालों की बर्बरता को रेखांकित करती हैं . सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की है वह अभी अधूरी है . यह जांच ऐसी नहीं है जिसमें सी बी आई अधिकारी नियम कानून से हटकर मनमानी कर सकेगें . इसमें कोई हेराफेरी की संभावना नहीं है . यह जांच और इसके नतीजों पर आराम से विश्वास किया जा सकता है . जहां तक केंद्रीय सरकार की तरफ से आयी जानकारी की बात है , वह भी फर्जी थी और उसे इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अफसर ने मनगढंत तरीके से तैयार किया था . इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि आम तौर पर इंटेलिजेंस ब्यूरो इस तरह के खतरनाक खेल में शामिल नहीं होती जिसके कारण एक संगठन के रूप में उसकी पोजीशन खराब हो. पुलिस के बहुत बड़े अफसरों से बात हुई तो उन लोगों ने भी इस बात की संभावना को बहुत दूर की कौड़ी बताया .लेकिन जब सीबीआई की जांच शुरू हुई और जांच की दिशा सही ढर्रे पर चल निकली तो गुजरात सरकार चलाने वाली राजनीतिक पार्टी के सर्वोच्च स्तर से इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अधिकारी को बचाने की कोशिश शुरू हो गयी.
सी बी आई की चार्जशीट में गुजरात पुलिस के अधिकारी पी पी पाण्डेय का नाम है .पी पी पांडे आजकल फरार हैं और गुजरात पुलिस उन्हें तलाश नहीं पा रही है. डी जी वंजारा उस वक़्त डी आई जी थे . उनके बॉस पी पी पांडे , पुलिस अधीक्षक, एन के अमीन ,जी एल सिंहल, जे एस परमार और तरुण बारोट भी चार्जशीट में बतौर अभियुक्त दर्ज किये गए हैं .
आरोप बहुत गंभीर हैं क्योंकि उनमें लिखा है कि जब इन लोगों को पकड़ कर डी जी वंजारा के एक दोस्त के फ़ार्म हाउस पर गैरकानूनी तरीके से रखा गया था तो वंजारा , पी पाण्डेय और इंटेलिजेंस ब्यूरो के बड़े अफसर राजेन्द्र कुमार ने इन लोगों से बातचीत की थी. बाद में पी पी पाण्डेय, वंजारा और राजेन्द्र कुमार ने वंजारा के घर पर बैठकर साज़िश रची थी. डी जी वंजारा सारे मामले के सरगना लगता है क्योंकि उसी ने जी एल सिंहल को हथियारों का इंतज़ाम करने को कहा था और उसने ही सिंहल को निश्चिन्त किया था कि घबड़ाओ मत. उसी ने सिंहल को फर्जी इनकाउंटर के होने के पहले ही वह एफआईआर दिखा दिया था जिसे बाद में पुलिस में फ़ाइल किया जाना था .जाहिर है कि अगर इतने बड़े अधिकारियों ने मारे गए लोगों से बातचीत की थी तो पुलिस की यह बात बिलकुल बेबुनियाद साबित हो जायेगी कि मारे गए लोगों को सही एनकाउंटर में मारा गया था .
उम्मीद की जानी चाहिये कि इस मामले की जांच के बाद पुलिस वालों के मन में फर्जी एनकाउंटर करने की ललक कम होगी और न्याय का निजाम कायम होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ के मामलों में बहुत ही सख्त रुख अपनाया है.
राजस्थान के फर्जी मुठभेड़ के अक्टूबर 2006 के एक मामले की सुनवाई के दौरान माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में शामिल पुलिस वालों को फांसी दी जानी चाहिए. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर साधारण लोग कोई अपराध करते हैं तो उन्हें साधारण सज़ा दी जानी चाहिए लेकिन अगर वे लोग अपराध करते हैं जिन्हें अपराध रोकने की ज़िम्मेदारी दी गयी है तो उसे दुर्लभ से दुर्लभ अपराध मानकर उन्हें उसी हिसाब से सज़ा दी जानी चाहिए. राजस्थान के इस मामले में पुलिस के बहुत बड़े अधिकारी भी शामिल थे.
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