फारवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन ने गुरूवार को जारी प्रेस बयान में कहा कि ” हम फारवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय में वसंत कुंज थाना, दिल्लीर पुलिस के स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों द्वारा की गयी तोड-फोड व हमारे चार कर्मचारियों की अवैध गिरफ्तारी की निंदा करते हैं।
फारवर्ड प्रेस का अक्टूेबर, 2014 अंक ‘बहुजन-श्रमण परंपरा’ विशेषांक के रूप में प्रकाशित है तथा इसमें विभिन्नी प्रतिष्ठित विश्वाविद्यलयों के प्राध्याकपकों व नामचीन लेखकों के शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हैं।
विशेषांक में ‘महिषासुर और दुर्गा’ की कथा का बहुजन पाठ चित्रों व लेखों के माध्य म से प्रस्तुात किया गया है। लेकिन अंक में कोई भी ऐसी सामग्री नहीं है, जिसे भारतीय संविधान के अनुसार आपत्तिजनक ठहराया जा सके।
बहुजन पाठों के पीछे जोतिबा फूले, पेरियार, डॉ् आम्े्ग्रडकर की एक लंबी परंपरा रही है। हम अभिव्यक्ति की स्वजतंत्रता पर हुए इस हमले की भर्त्सिना करते हुए यह भी कहना चाहते हैं कि यह कार्रवाई स्पष्ट रूप से भाजपा में शामिल ब्राह्मणवादी ताकतों के इशारे पर हुई है। देश के दलित-पिछडों ओर अादिवासियों की पत्रिका के रूप में फारवर्ड प्रेस का अस्त्त्वि इन ताकतों की आंखों में लंबे समय से गडता रहा है।
फारवर्ड प्रेस ने हाल के वर्षों में इन ताकतों की ओर से हुए अनेक हमले झेले हैं। इन हमलों ने हमारे नैतिक बल को और मजबूत किया है। हमें उम्मीरद है कि इस संकट से मुकाबला करने में हम सक्षम साबित होंगे।
दूसरी तरफ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस मामले में कहा है कि फारवर्ड प्रेस के दफ्तर पर पड़ा छापा से यह साबित होता है कि कुछ लोग विचारों को कैद करना चाहते हैं. उन्होंने पूछा है किऐसे किसी विचार को कैद किया जा सका है भला? उन्होंने फारर्वड प्रेस की पत्रकारिता को बधाई देते हुए कहा है कि बहुजन नरेश महिषासुर का प्रताप इतनी तेजी से फैलेगा, यह किसने सोचा था.
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(अगर आप फारवर्ड प्रेस का पुलिस द्वारा उठाया गया अंक पढना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाएं –
https://www.scribd.com/doc/242378128/2014-October-Forward-Press-PDF)
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