बिहार संग्रहालय की इतिहास दीर्घाओं व अन्य दीर्घाओं का लोकार्पण के मौके पर आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रम के तीसरे दिन कला शिविर सह कार्यशाला में बड़ौदा के प्रसिद्ध कलाकार ज्योति मानशंकर भट्ट ने कहा कि फाइन आर्टस के कलाकारों को लगातार अपने कामों का अभ्यास करना चाहिए, तभी उनकी कृति शानदार होती है। उन्होंने अपनी लाइफ जर्नी को साझा करते हुए कहा कि आर्टस को और समृद्ध बनाने के लिए एक ऐसे सिस्टम का होना जरूरी है, जिसमें छात्रों को सिलेबस के अलावा कला को देखने और समझने का अपना अनुभव मिल सके। हमारे गुरू प्रोफेसर बेंद्रे ऐसे ही शिक्षक थे। वे कभी शिक्षक की भूमिका में होते थे तो कभी हम लोगों के कुलीग बन कर चीजों को देखते – समझते थे। वे उस दौर के बड़े कलाकारों में से एक थे।
नौकरशाही डेस्क्
उन्होंने कहा कि भारत में आज भी ये परंपरा कायम है, जहां छात्रों को पढ़ाते हैं और खुद उनके साथ मिलकर सीखते भी हैं। ये कला के क्षेत्र में सबसे जरूरी है। गुजरात के एम एस यूनिवर्सिटी से आर्टस की शिक्षा लेने वाले श्री भट्ट ने बताया कि हालांकि पढ़ना लिखना शुरू से ही मेरे लिए असभंव रहा, मगर अनुभवों ने मुझे कलाकार बना दिया। मैंने आर्टस के बारे में कुछ भी पढ़ा नहीं। बस हुसैन सहाब, मोहन कामत जैसे बड़े कलाकारों के साथ मिलकर काम करने का मौका मिला। इस दौरान हम उनसे ढ़ेरों बातें करते और सीखते रहे। उन्होंने आर्टस फोटोग्राफी को शामिल करने पर चर्चा करते हुए कहा कि कई बार होता है बहुत चीजों हमारे लिए मायने नहीं रखती, जिसे हम नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन वहीं चीजों बाद में हमारे लिए काफी अहम होती है। ये काम हम पेंटिंग के जरिए नहीं करते पाते हैं। तो मैंने उन चीजों को सहेजने के लिए फोटो ग्राफी शुरू की। हालांकि शुरूआत में फोकस करने में दिक्कत आई, मगर बाद में तकनीक ने उसे और आसान बना दिया। आज में अनुमान से चीजें देख कर फोटो खींच लेता हूं, और बाद में देखता हूं। क्योंकि फिजिकल कमजोर हूं।
उन्होंने कहा कि हमारे यहां विदेशों की तरह प्रतिस्पार्धा का चलन उस तरह नहीं है, जैसा विदेशों में है। हमारे यहां के यूथ काफी टाइलेंटेड हैं, मगर फिर भी वे बुजुर्गों का सम्मान करते हैं और उनसे कुछ सीखने की उम्मीद रखते हैं। उन्होंने आर्टस के छात्रों से चीजों को बारीकी से देखने और समझने की बात कही। उन्होंने कहा कि इसके लिए कभी कभी ऐसे प्रदर्शनी के आयोजन की कोशिश होनी चाहिए, जिसमें एक ही पेंटिंग प्रदर्शित हो और छात्र उसे ही घंटों देखें। इससे कला को देखने का स्तर उंचा होगा।वहीं, परिचर्चा के दौरान कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के अपर सचिव आनंद कुमार, सांस्कृतिक निदेशालय के निदेशक सत्यप्रकाश मिश्रा, विभाग के उप सचिव तारानंद वियोगी, अतुल वर्मा, संजय सिंह, संजय सिन्हा, जे पी एन सिंह, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा आदि लोग उपस्थित थे।
उधर, कलाकारों की नजर में बापू थीम पर आयोजित वर्कशॉप में ग्वालियर (मध्यप्रदेश) से आये कलाकार युसूफ ने कहा किबिहार संग्रहालय एक अच्छी शुरूआत है। बिहार में आर्ट एंड कल्चर मूवमेंट दिन ब दिन बढ़ रहा है, जो कला के लिए अच्छा संकेत है। यहां के युवा ऊर्जावन हैं। ऐसे में सरकार के पहल को देख कर उम्मीद है कि बिहार संग्रहालय की उनकी कोशिश का परिणाम अच्छा हो। मगर चिंता बस इस बात की है कि इसको जिस सोच और जोश के साथ शुरू किया गया है, वो बरकार रहे। क्योंकि अक्सर ऐसे चीजों को चलाने में काफी दिक्कतें आती हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने इसके लिए तो ऑटोनोमस बॉडी बनाने की बात की है। मगर भोपाल का भारत भवन भी तो ऑटोनोमस बॉडी था। लेकिन उसका क्या हुआ। मैं वहां डायरेक्टर था। मुझे इसका अंदाजा है कि ऐसे संस्थानों को चलाने में किन – किन कठिनाइयों को झेलना पड़ा सकता है, वो भी ऑटोनोमस बडी होने के बावजूद।
श्री युसूफ ने आगे कहा कि बिहार संग्रहालय के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण बात ये है कि इसके एडमिनिस्ट्रेशन में नौकरशाहों की जगह कलाकारों पास ज्यादा जिम्मेवारी होनी चाहिए। दूसरी बात ये कि भारत भवन में 75 फीसद पावर कलाकार के हाथ में था और 25 फीसद नौकरशाह के हाथ में। यहां ये तो उलटा है। उन्होंने कहा कि वर्ल्ड क्लास म्यूजियम में कौन सी पेंटिंग वर्ल्ड क्लास है, इसकी समझ किसको ज्यादा होगी नौकरशाहों या कलाकारों को। ये भी तय करना होगा। बिहार संग्रहालय के बारे में उन्होंने कहा कि संग्रहालय में अभी का कलेक्शन व्यावसायिक ज्यादा लग रहा है। यहां आर्टिस्टिक बेस की कमी दिख रही है। यहां ज्यादा ध्यान इस बात पर है कि कौन सी पेंटिंग ज्यादा दाम में बिक रही है। बिहार संग्रहालय की निरंतरता के लिए ऐसे रास्ते निकलाने होंगे, जिसमें कमर्सियल और आर्टिस्टिक संतुलन हो। यहां आर्ट मैनेजमेंट ज्यादा महत्वपूर्ण है। लाइटिंग भी कमर्सियल है, जिसमें आधी पेंटिंग छुप जा रही है। आर्टिस्टिक वीजन मिसिंग है।
वहीं, कोलकाता के आर्टिस्ट सुब्रतो गंगोपाध्याय ने कहा कि भारत के बड़े संग्रहालय में से एक गिना जायेगा बिहार संग्रहालय गिना जायेगा। आर्किटेक्ट बेहतरीन है। उन्होंने कहा कि कलकता का म्यूजियम ओल्ड फीलिंग देता है, मगर बिहार म्यूजियम में नयेपन की झलक मिलती है। उसका हिस्टॉरिकल, कल्चरल, जियोलॉजिकल महत्व है, जबकि बिहार में मॉर्डन् आर्ट और तकनीक को महत्व दिया जा रहा है। सब कुछ वर्तमान के अनुसार है। इस म्यूजियम को अलग तरीके से सोचा गया है। इसका वैल्यू आने वाली पीढियों अहम होगा। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार म्यूजियम में शुरू में तो बहुत सारी सुविधायां और सौंदर्यीकरण पर ध्यान दिया गया है, मगर अक्सर देखा गया है कि समय के साथ इसमें कमी आ जाती है। इस पर ध्यान देना होगा।