आप हैं रोहतास के डीएम. नाम है संदीप कुमार पुडाकलकट्टी. फाइलों पर कुंडली मार के बैठ जाने का इनका अपना रिकार्ड है. वह फाइलों को महीनों गतालखाने में रखने में माहिर हैं पर चालाकी इतनी कि वह पकड़े भी न जायें
फाइलों को रोक रखने की इनकी चालाकी ऐसी है कि वह ऐसा कोई सुबूत नहीं छोड़ते जिससे यह पता चल सके कि फाइल के रुकने के वह जवाबदेह हैं.
डीएम साहब ये सारी चालाकी इसलिए करते हैं कि अगर कोई इन फाइलों के बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगे तो इसमें उनकी पकड़ न होने पाये.
टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए आलोक चमड़िया की रिपोर्ट के मुताबिक डीएम साहब ने एक फाइल को दस्तखत के बाद वापस करने में कई महीने लगाये हालांकि उस फाइल पर उन्होंने तब ही दस्तखत कर दिये थे जब वह फाइन उनके पास पहुंची थी, लेकिन दस्तखत के बाद उन्होंने वापस करने में महीनों लगा दिये.
इसी तरह की एक फाइल जो मुफ्फसिल पत्रकार की मान्यता से जुड़ी थी, उसे तीन महीने के बाद अगस्त 2014 में लौटाई गयी. जबकि दस्तखत के लिए यह फाइल उनके पास मई 2014 में सौंपी गयी थी. जबकि डीएम साहब ने इस फाइल को दबाये रखने के बाद भले ही अगस्त में फाइल लौटायी पर इस पर दस्तखत के साथ मई महीने की तारीख ही अंकित की गयी है. {फोटो संदीप पुडाकलकट्टी}
मातहत परेशान
डीएम साहब की कुंडली मार कर फाइल पर बैठ जाने से संभावित खतरे के डर से अब उनके मातहत परेशान हैं और उन्हें अपनी नौकरी का खतरा होने लगा है क्योंकि उनके मातहतों को डर सताने लगा है कि अगर कोई उनसे फाइल की तारीख के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगेगा तो वे फंस जायेंगे. इसलिए डीएम साहब के मातहतों ने इस संकट से जान छुड़ाने के लिए एक नया रिकार्ड मेनटेन करने लगे हैं. इस रिकार्ड में अब वे उस तारीख को अंकित कर देते हैं जिस तारीख को वे डीएम साहब को फाइल सुपुर्द करते हैं.
एक और उदाहरण
फाइलों पर दस्तखत की लेटलतीफी की एक और मिसाल देखिए. जून 2014 में बंदूक खरीदने से संबंदित फाइल डीएम साहब के पास पहुंची. लेकिन उन्होंने नो ऑब्जेक्शन एनओसी पर दस्तखत करके छह महीने बाद यानी दिसम्बर 2014 में वापस किया. हालांकि उन्होंने इस पर जो दस्तखत किये उस पर जून महीने की तारीख ही अंकित की. इस छह महीने की देरी करने के कारण परिणाम यह हुआ कि इतने समय में बंदूक निर्गत करने की तारीख ही समाप्त हो गयी. मतलब यह साफ है कि लाइसेंस लेने वाले व्यक्ति को तो लाइसेंस तो मिल गया पर उसे उस लाइसेंस का कोई फायदा नहीं हुआ.
फाइलों पर कुंडली मार के बैठने की एक और मिसाल ठेके पर बाहल किये जाने वालों से जुड़ी है. इस बहाली से जुड़ी फाइल एडीएम के यहां से डीएम साहब को 17 दिसम्बर 2014 को भेजी गयी. लेकिन डीएम संदीप केआर ने उस फाइल को 70 दिनों के बाद 27 फरवरी 2015 को लौटायी. हालांकि डीएम ने उस फाइल पर 17 दिसम्बर 2014 की तरीख पर ही दस्तखत किये.
इस लेट लतीफी का नतीजा यह हुआ कि जिन प्रत्याशियों को दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में ज्वाइन कर लेना चाहिए ता अब उन्हें एक मार्च 2015 को ज्वाइन करने को कहा गया है.
जब इस लेटलतीफी के बारे में रोहतास के डीएम से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह इस विलंब के कारणों का पता लगायेंगे. वहीं दूसरी तरफ काराकाट के एमएलए राजेश्वर राज ने कहा कि इस मामले में डीएम संदीप केआर पुडाकलकट्टी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए.