फिर ‘गुलाम’ की गिरफ्त में आयी इदारा शरिया की बादशाहत, सियासतदानों से पाक नहीं हो सका संगठन
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]
पटना की प्रसिद्ध इस्लामी संस्था इदारा शरिया में अप्रैल में आई भूचाल के वक्त इसके दो बड़े कर्ता-धर्ता गुलाम रसूल बलियावी और मौलान सनाउल्लाह रिजवी पर गाज गिरी थी. मज्लिस ए आमला ने दोनों के अधिकार छीन लिये थे. इसके बदले सारी ताकत मज्लिस ए आमला ने अपने पास ले ली थी और ऐलान कर दिया गया था कि तमाम कमिटियां भंग की जाती हैं. साथ ही यह भी कहा गया था कि भविष्य में इदारा के टाप पोस्ट पर किसी सियासतदां को बैठने नहीं दिया जायेगा.
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याद दिलाऊं कि इदारा शरिया में बगावत तब शुरू हुई थी जब अप्रैल 2018 में इमारत शरिया द्वारा आयोजित दीन बचाओ, देश बचाओ रैली में इदारा के सनउल्लाह रिजवी शरीक हुए थे. इस रैली में इदारा के अध्यक्ष गुलाम रसूल बलियावी मौजूद नहीं थे. चूंकि बलियावी जनता दल यू के मेम्बर और विधान परिषद के सदस्य हैं. दीन बचाओ रैली में किसी नेता को मंच पर नहीं बुलाया गया था. इसका असर इदारा शरिया के प्रबंधन पर इतना पड़ा कि इसका परिणाम यहां तक पहुंच गया कि इसकी तमाम कमेटियां भंग कर दी गयीं.
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लेकिन लगता है कि इदारा शरिया की मज्लिस ए आमला खुद इस मामले में बौनी साबित हुई और फिर उन्ही हाथों में इदारा की बागडोर चली गयी जिन हाथों में दशकों से इसकी नकेल थी. गुलाम रसूल बलियावी को कल यानी 31 अक्टूबर को तमाम कहासुनी के बावजूद इदारे की बादशाहत मिल गयी. चंद लोगों ने इसका विरोध तो किया पर उनकी आवाज नकारखाने में तूती की आवाज बन कर रही गयी.
अवामी इजलास
प्रतिनिधि सभा यानी नुमाइंदों के इजलास में दो मेम्बरान कलीम इमाम और वसी अख्तर ने मौलाना गुलाम रसूल बलियावी का खुल कर विरोध किया लेकिन उनकी एक न चली.
इदारा शरिया मुसलमानों का प्रतिनिधि संगठन के तौर पर प्रतिष्ठित है. लेकिन इसके रहनुमाओं की सियासी सक्रियता ने संगठन को पार्टियों का गुलाम जैसा बना डाला है. इदारा के अध्यक्ष( मुहतमिम) गुलाम रसूल बलियावी जदयू से राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं और फिलवक्त एमएलसी हैं.
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मुसलमानों की शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और शरियत पर काम करने वाली संस्था इदारा शरिया के लोगों पर अकसर यह इल्जाम लगता रहा है कि इसके रहबर कुर्सियों की खातिर सियासी पार्टियों से सौदेबाजी करते हैं जिससे मुसलमानों को अवामी तौर पर नुकसान उठाना पड़ता है.
लेकिन गुजरे दिन जिस तरह से अवामी इजलास आयोजित करके फैसले लिये गये उससे साफ जाहिर हो गया है कि गुलाम रसूल बलियावी की पकड़ इतनी मजबूत है कि इदारा शरिया के बॉबस की कुर्सी पर वह दुबारा काबिज होने कामयाब रहे.