300 से अधिक लेखकों, पत्रकारों, प्रकाशकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फॉरवर्ड प्रेस पर पुलिस द्वारा की गयी दमनात्माक कार्रवाई की कडी निंदा की है। निंदा करने वालों में उदय प्रकाश, अरुन्धति राय, शमशुल इस्लाम, शरण कुमार लिंबाले, गिरिराज किशोर, आनंद तेल्तुम्बडे, कँवल भारती, मंगलेश डबराल, अनिल चमडिया, अपूर्वानंद, वीरभारत तलवार, राम पुनियानी, एस.आनंदआदि अनेक अंग्रेजी, हिंदी और मराठी के प्रतिष्ठित लेखक शामिल हैं। उन्होंने यहां मंगलवार को गृह मंत्री ने नाम जारी अपील में कहा कि यह देश विचार, मत और आस्थाओं के साथ अनेक बहुलताओं का देश है और यही इसकी मूल ताकत है। लोकतंत्र ने भारत की बहुलताओं को और भी मजबूत किया है। आजादी के बाद स्वतंत्र राज्य के रूप में भारत ने अपने संविधान के माध्यम से इस बहुलता का आदर किया और उसे मजबूत करने की दिशा में प्रावधान सुनिश्चित किये। अपील को गृहमंत्रालय को भेज दिया गया है।
देश के कई हिस्सों में रावण की पूजा
इस देश के अलग–अलग भागों में शास्त्रीय मिथों के अपने-अपने पाठ लोकमिथों के रूप में मौजूद हैं। देश के कई हिस्सों में ‘रावण’ की पूजा होती है, पूजा करने वालों में सारस्वत ब्राह्मण भी शामिल हैं। महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर राजा बलि की पूजा की जाती है, जो वैष्णवों के मत के अनुकूल नहीं है। आज भी इस देश में असुर जनजाति के लोग रहते हैं, जो महिषासुर व अन्य असुरों को अपना पूर्वज मानते हैं। हर साल मनाये जाने वाले अनेक पर्वों में धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप निर्मित छवि वाले असुरों के खिलाफ जश्न मनाया जाता है, जो एक समूह के अस्तित्व पर प्रहार करने के जाने –अनजाने आयोजन हैं।
जेएनयू में मन रहा महिषासुर शहादत दिवस
दिल्ली से प्रकाशित फॉरवर्ड प्रेस पत्रिका अक्टूबर के अपने ‘बहुजन –श्रमण परंपरा विशेषांक’ में इस तरह की अनेक परंपराओं, सांस्कृतिक आयोजनों, विचारों को सामने लायी है, जिसमें ‘दुर्गा –मिथ’ या दुर्गा की मान्यता के पुनर्पाठ भी शामिल हैं। 2011 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र समूह ने ‘महिषासुर शहादत’ दिवस मनाने की परम्परा की शुरुआत की, जिसके बाद पिछले चार सालों में देश के सैकड़ो शहरों में यह आयोजन आयोजित होने लगा है। इस व्यापक स्वीकृति का आधार इस देश के बहुजन –श्रमण परम्परा और चेतना में मौजूद है।
पुलिस कार्रवाई की निंदा
पिछले 9 अक्टूबर को इस कारण फॉरवर्ड प्रेस के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा अतिवादी लोगों के एक समूह के द्वारा किये गए एफ आई आर और उसके बाद पुलिस की कार्यवाई की हम निंदा करते हैं। पत्रिका के ताजा अंक की प्रतियां जब्त कर ली गयी हैं तथा संपादकों के घरों पर पुलिस का छापा, उनके दफ्तर और घरों पर निगरानी पत्रिका के कामकाज पर असर डालने के इरादे से की जा रही है। यह अभिव्यक्ति की आजादी और देश में बौद्धिक विचार परम्परा के खिलाफ हमला है। वैचारिक विरोधों को पुलिसिया दमन या कोर्ट-कचहरी में नहीं निपटाया जा सकता। अगर पत्रिका में प्रकाशित विचारों से किसी को असहमति है तो उसे उसका उत्तर शब्दों के माध्यम से ही देना चाहिए। हम भारतीय जनता पार्टी सरकार से आग्रह करते हैं कि इस एफ आई आर को तत्काल रद्द करने का निर्देश जारी करे और पुलिस को निर्देशित करे कि इसके संपादकों के खिलाफ अपनी कार्यवाई को अविलम्ब रोका जाए।