गंगा और सोन के बीच बसे बक्सर में यूं तो कोई पहाड़ नहीं पर इन दिनों यहां एक ऐसे पहाड़ की चर्चा गर्म है जो, है तो, अंटार्क्टिका में लेकिन अमेरिका ने बक्सर के वैज्ञानिक के नाम पर उस पहाड़ का नाम रखा है.
बक्सर से बब्लू उपाध्याय की रिपोर्ट
बिहार के बक्सर जिले के निवासी और एक प्रख्यात वैज्ञानिक को उनके नाम पर अमेरिका में अंटार्कटिका के एक पहाड़ का नामकरण कर उन्हें एक अनूठा सम्मान दिया गया है.
देश दुनिया के सभी क्षेत्रो में बिहारी प्रतिभा ने अपना लोहा मनवाया है और इसी उदाहरण हैं बिहार राज्य और बक्सर जिले के अमेरिकी वैज्ञानिक अखौरी यचुतानन्द सिन्हा। अपनी प्रतिभा का विदेश में भी लोहा मनवा चुके अखौरी यचूतानन्द सिन्हा को अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा है। अंटार्कटिका के एक पहाड़ का नाम सिन्हा के नाम पर रखा गया है. इधर अखौरी सिन्हा के परिवारवालों और उनके जाननेवालों में इसकी जानकारी होने के बाद ख़ुशी की लहर है। बक्सर में ही रहनेवाले उनके छोटे भाई से जब सम्मान पर चर्चा हुयी तो ख़ुशी से उनकी आँखे भर आई।
चुरामनपुर से अंटर्क्टिका तक
अखौरी सिन्हा का पूरा नाम अखौरी यचूतानन्द सिन्हा है और वो बक्सर जिले के सदर प्रखंड के चुरामनपुर गांव के रहनेवाले है। एनएच 84 पर उनका पैतृक गांव है। हलाकि पढाई के दौरान वे हमेशा अपने गांव से दूर रहे। उनके बारे में कहा जाता है की वो बचपन से ही होनहार थे। खासकर पढाई लिखाई के अलावे कुछ नया कर गुजरने की ललक उनमे हमेशा दिखाई पड़ती थी। उनके पैतृक गांव चुरामनपुर में उनकी आज भी आलीशान कोठी है। और वंहा वे अक्सर आते जाते रहते है। गांव के एक बड़े से कमरे में उनकी बड़ी बड़ी तस्वीरें और उनके जीवन से जुडी कई स्मृतियाँ उनकी सफलता की कहानी बयान करती है। दीवारो पर टंगे प्रमाणपत्र उनकी गांव में नही होने की कमी कभी नही खलने देती। हलाकि प्रदेश के अंदर रहकर ही उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढाई पूरी की और देश से विदेश तक का सफर तय किया।
रिसर्च का क्षेत्र
दरअसल अखौरी सिन्हा के जैविक शोध ने जीव जंतुओ की गणना के बारे में महत्वपूर्ण आँकड़े जुटाने में अहम भूमिका निभाई थी। सिन्हा ने इलाहबाद विश्वविद्यालय से बी. एससी की और उसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से जूलॉजी में एम एस सी की। श्री सिन्हा ने वर्ष 1956 से लेकर 1961 तक रांची कॉलेज के जूलॉजी बिभाग में अध्यापन का भी काम किया और फिर यही से वो अमेरिका चले गए। फ़िलहाल सिन्हा यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा के अनुवांशिकी ,कोशिका जीव विज्ञान और विकास बिभाग में सहायक प्रोफ़ेसर है। प्रख्यात अमेरिकी वैज्ञानिक अखौरी यचूतानन्द पांच भाइयों और दो बहनो में सबसे बड़े है। उनके दूसरे भाई भी अमेरिका में ही प्रोफ़ेसर है जबकि तीसरे भाई डॉक्टर अखौरी रमेश चन्द्र सिन्हा खुद एक बहुत बड़े डॉक्टर है और वो बक्सर में रहते है और यही अपने क्लीनिक से लोगो का इलाज़ करते है।
बताया जाता है की अंटार्कटिका में पहाड़ का नाम माउन्ट सिन्हा रखने के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है की है श्री सिन्हा उस टीम के सदस्य थे जिसने 1972 और 1974 में बेलिंगशासेन और अमंडसेन समुद्री क्षेत्र में अमेरिकी कॉस्ट गार्ड कैटर्स साउथविंड और ग्लेशियरों में सील ,व्हेल और पक्षियों की गणना की थी। बहरहाल सिन्हा को मिले इस सम्मान के बाद उनके परिवारवाले काफी उत्साहित है। उनकी ख़ुशी देखकर ऐसा लगता है जैसे ये सम्मान उन्हें ही मिला है। जाहिर है परिवार में जब कोई सम्मानित होता है तो उनके अपनों के रुतबे में भी चार चाँद लग जाता है।
कल जैसे ही टेलीविजन और समाचार पत्रो में अखौरी सिन्हा के सम्मान की खबर आई उनके चाहनेवालों में भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनके गांव में एक अजीब ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी और सभी की जुबान पर पूरे दिन बस यही चर्चा छायी रही। अखौरी सिन्हा के भतीजे निर्मल बताते हैं वह बहत सी सरल स्वाभाव के है और वे जब भी अपने बक्सर स्थित गांव चुरामनपुर आते है सभी के साथ बैठकर घंटो बाते करते है। मिलनसार और प्रखर व्यक्तित्व के कारण वो सभी के चहेते होने के साथ साथ उनके दिलों पर भी राज करते है।
गांव के उमेश कुमार बताते हैं कअखौरी सिन्हा विदेश में रहने के वावजूद भी अपनी मिट्टी और संस्कृति से हमेशा जुड़े रहे। वो जब भी अपने गांव आते है तो लोगों को न केवल रोचक और महत्वपूर्ण बाते बताते है बल्कि उनके सुख दुःख का भी ख्याल रखते है।
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