बक्सर लोकसभा संसदीय क्षेत्र एनडीए के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। यह सीट जदयू के खाते में जाएगी या भाजपा के खाते, अभी तय नहीं है। अभी यह सीट भाजपा के कब्जे में हैं और स्थांनीय सांसद अश्विनी कुमार चौबे केंद्रीय स्वास्य राज्य मंत्री हैं। एनडीए के पुराने दौर में यह सीट भाजपा के कोटे में थी और लालमुनी चौबे सांसद हुआ करते थे। इस सीट पर जदयू ने कभी दावेदारी भी नहीं जतायी थी। लेकिन इस बार हालत बदले हुए हैं और जदयू के विधायक ददन पहलवान इस सीट पर जदयू उम्मीदवार के रूप में अपना दावा जता रहे हैं। यदि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना पड़ा तो उन्हें विधानसभा से इस्तीेफा देना होगा, अन्यथा दलबदल कानून के तहत उनकी सदस्यता समाप्न हो सकती है। हालांकि यह बहुत कुछ विधान सभाध्यक्ष की कृपा पर निर्भर होगा और अध्यक्ष वही करेंगे, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहेंगे। पूर्व विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की ‘नीतीश भक्ति’ तो जगजाहिर है।
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वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 8

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सांसद — अश्विनी चौबे — भाजपा — ब्राह्मण
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
ब्रह्मपुर — शंभु यादव — राजद — यादव
बक्स्र — संजय तिवारी — कांग्रेस — ब्राह्मण
डुमरांव — ददन पहलवान — जदयू — यादव
राजपुर — संतोष निराला — जदयू — रविदास
रामगढ़ — अशोक सिंह — भाजपा — राजपूत
दिनारा — जयकुमार सिंह — जदयू — राजपूत
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2014 में वोट का गणित
अश्विनी चौबे — भाजपा — ब्राह्मण — 319012 ( 33 फीसदी)
जगदानंद सिंह — राजद — राजपूत — 186674 ( 20 फीसदी)
ददन पहलवान — बसपा — यादव — 184788 (19 फीसदी)
श्यापमलाल कुशवाहा — जदयू — कुशवाहा — 117012 (12 फीसदी)
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सामाजिक बनावट
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बक्सर लोकसभा संसदीय सीट में सबसे अधिक संख्या यादव वोटरों की है। इसके बाद ब्राह्मण, राजपूत व भूमिहारों की है। हालांकि इस सीट से लगातार ब्राह्मणों के जीतने के कारण इसे ब्राह्मण बहुल भी मान लिया जाता है। डुमरांव महाराज के असर के कारण राजपूतों का भी प्रभाव रहा है। अतिपिछड़ा वोटों की संख्या में काफी है। मुसलमान वोटों की संख्याण भी बड़ी तादाद में है। अनुसूचित जाति में रविदास व पासवान की बड़ी आबादी है। इन दोनों जातियों की वोटिंग कैपीसिटी भी काफी है। रविदास की तुलना पासवान जाति आर्थिक और संसाधन के रूप में काफी सक्षम हैं। पासी जाति की भी आबादी काफी है। इस सीट से आमतौर पर ब्राह्मण और राजपूत ही जीतते रहे हैं। एकाध बार यादव ने भी जीत दर्ज की है। डुमरांव महाराज के प्रभाव वाले इस क्षेत्र में राजपूत व ब्राह्मण के बीच सत्ता संग्राम होता रहा है। वैसी स्थिति में आम मतदाता राजपूतों के बजाये ब्राह्मणों को प्राथमिकता देता रहा है। 1977 में समाजवादी नेता रामानंद तिवारी भी जनता पार्टी के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। यादव की सबसे बड़ी आबादी होने के बाद भी बक्सर राजपूत व ब्राह्मण का अखाड़ा ही माना गया। राज्य की प्रमुख पार्टी राजद ने भी इस सीट से गैरयादव को टिकट देता रहा है। वैसी स्थिति में परिसीमन के बाद 2009 में राजद के उम्मीदवार जगदानंद सिंह निर्वाचित हुए थे। लेकिन जीत का मार्जिन काफी कम था। राजद, भाजपा, बसपा और निर्दलीय ददन यादव के बीच काफी कम वोटों का फासला रहा था।


ददन, श्यागमलाल व हाथी
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उत्तर प्रदेश की सीमा लगने और रविदासों की बड़ी संख्या होने के कारण बसपा का हाथी अपना असर दिखाता रहा है। कुशवाहा और यादव की आबादी प्रभावकारी भूमिका में रही है। इस कारण है कि ददन यादव व श्यामलाल कुशवाहा जैसे उम्मीदवार भी वोटों का एक बड़ा हिस्सा समेट लेते हैं। 2009 में निर्दलीय ददन यादव ने यादव का वोट काटकर जगदानंद सिंह की जीत का मार्जिन काफी कम कर दिया था। 2009 में श्यामलाल कुशवाहा बसपा के उम्मीदवार थे। दोनों पर चुनाव में धन बल का इस्तेमाल का आरोप भी लगता रहा है। 2014 में ददन पहलवान बसपा के उम्मीदवार के रूप में तीसरे स्थान पर रहे, जबकि श्यामलाल कुशवाहा जदयू उम्मीदवार के रूप में चौथे स्थान पर चले गये।
कौन-कौन हैं दावेदार
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फिलहाल जगदानंद सिंह राजद के निर्विवाद उम्मीदवार हैं। यदि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जतायी, तभी कोई नये नाम पर विचार किया जाएगा। वैसे उनके ही दो पुत्र पुनीत सिंह व सुधाकर सिंह राजनीति के मैदान में सक्रिय हैं। पुनीत सिंह एमएलसी और सुधाकर सिंह विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं। फिलहाल दोनों राजद की राजनीति में सक्रिय हैं। जहां तक एनडीए की बात है, तो इस सीट पर जदयू अपना दावा नहीं जताएगा। यदि ददन पहलवान चुनाव लड़ने पर अड़े रहे तो उन्हें विधान सभा से इस्तीफा देना पड़ सकता है। भाजपा के अश्विनी चौबे अभी बक्सर के सांसद हैं। यदि वे भाजपा के ‘शहीद’ होने सांसदों में शामिल होंगे तभी पार्टी को नये उम्मी़दवार की तलाश करनी होगी। लेकिन इतना तय है कि अश्विनी चौबे चुनाव बक्सर से लड़ेंगे, अन्यथा किसी और जगह से पार्टी उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है।

 

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By Editor


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