बगहा पुलिस फायरिंग पर जांच टीम ने प्रथम दृष्टि में पाया है कि स्थानीय थाना समय पर पाथमिकी दर्ज कर लेता तो लोग उग्र नहीं होते और फारयरिंग की नौबत नहीं आती और लोग नहीं मरते.
जांच दल की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोग नौरंगिया से वाल्मिकीनगर दौड़ते रहे लेकिन किसी थाने ने प्राथमिकी दर्ज करने में त्तपरता नहीं दिखायी. इससे लोगों में पहले असंतोष बढ़ा और फिर बाद में जब भीड़ एकत्र होती गयी तो वह उग्र होती चली गयी.
ध्यान रहे कि एडीजी कानून व्यवस्था एसे भारद्वाज के नेतृत्व में इस मामले की जांच की गयी थी.
ध्यान रहे कि बगहा के नौरंगिया थाने में एक व्यक्ति का कथित रूप से अपहरण होने और फिर उसकी मृत्यु की खबर के बाद लोग नाराज थे. उसके बाद पुलिस फायरिंग हुई जिसमें छह लोगों को जवान गंवानी पड़ी थी.
शुक्रवार की देर शाम एडीजी (पुलिस मुख्यालय) एसके भारद्वाज व जेल आईजी आनंद किशोर के नेतृत्व में गठित उच्चस्तरीय जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सौंप दी. यह टीम मुख्यमंत्री के निर्देश पर गठित हुई थी. इस रिपोर्ट में नौरंगिया और वाल्मिकीनगर थाने के अलावा एसडीपीओ सैलेश सिन्हा को भी दोषी माना गया है.
इस जांच के आधार पर सरकार ने मामले की किसी जज से न्यायिक जांच कराने का फैसला लिया है.
हालंकि इस रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि -‘पुलिस अगर गोली नहीं चलाती तो कई पुलिस वाले मारे जाते पुलिस ने आत्मरक्षार्थ गोली चलायी. पुलिस पर जिन ईंट के टुकड़ों से हमला किया गया वह भी शक के घेरे में है कि आखिर इतनी बड़ी मात्र में ईंट के टुकड़े कहां से आए? कुदाल से भी हमला किया गया।’ .