बगहा पुलिस फायरिंग में शामलि एसडीपीओ व थानाध्यक्ष के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है.लेकिन सवाल यह है कि दो साल पहले फारबिसगंज पुलिस फायरिंग में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अअभी तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
बगहा के डीएसपी सैलेश कुमार सिन्हा, नौरंगिया थानाध्यक्ष विनय कुमार सिंह और इंस्पेक्टर दयानंद झा के खिलाफ राज्य सरकार ने दफा 302 का मामला दर्ज कर लिया है. मालूम हो कि तीन दिन पहले नौरंगिया थाना में पुलिस की गोली से थारू जनजाति के छह लोगों की पुलिस फायरिंग में मौत हो गयी थी. ये लोग एक युवा के लापता होने और फिर हत्या किये जाने पर पुलिस की लापरवाही से नाराज थे.
इस पुलिस फायरिंग की बड़े पैमाने पर निंदा की गयी . कई दलों ने इसके विरोध में बंद का आह्वान किया था. यहां तक हाल ही में जद यू से अलग हुए भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने पुलिस फारिंग की जमकर निंदा की.
इस पुलिस फायरिंग में हालांकि संदेह था कि सरकार फारबिसगंज पुलिस फायरिंग की तरह लीपापोती कर देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कुछ लोग इसे जद यू से भाजपा के अलग होने का कारण भी बता रहे हैं. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि फारबिसगंज गोली कांड में भाजपा के रसूखदार नेता की मिलीभगत थी इसलिए नीतीश सरकार बेबस थी. अब चूंकि यह बेबसी भी खत्म हो गयी है तो ऐसे में राज्य सरकार को फारबिसगंज गोली कांड की जांच को आगे बढ़ाना चाहिए और दोषी पुलिसकर्मियों पर भी हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए.
अगर राज्य सरकार ऐसा करती है तो जनता का विश्वास उस पर बढ़ेगा, वरना उसकी अधूरी ईमानदार कोशिश किसी काम नहीं आयेगी.
ध्यान रहे कि दो साल पहले फारबिसगंज में भाजपा के एक विधानपार्ष की फैक्ट्री के बगल से आम रास्ते को बंद कर दिये जाने का कुछ लोग विरोध कर रहे थे. जिसमें विरोध करने वालों पर पुलिस ने बरहमी से गोली चलाई जिसमें औरतें और बच्चे समेत चार लोगों की मौत हो गयी थी. यह मामला दो साल से लटका पड़ा है अभी तक कोई जांच रिपोर्ट नहीं आयी है.
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