पार्टी में बढ़ते असंतोष और बगावत के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सांसद आरसीपी सिंह ने राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा खोल दिया है।
वीरेंद्र कुमार यादव
अनुमान लगाया जा रहा था कि आयोगों में नियुक्ति लोकसभा चुनाव के बाद की जाएगी। लेकिन पार्टी सांसदों और विधायकों के बागी होते तेवर के बीच कार्यकर्ताओं को बांधे रखना नीतीश कुमार के लिए मुश्किल हो गया था। इस मुश्किल दौर से निबटने के लिए नीतीश कुमार ने आयोगों में नियुक्ति को एक माध्यम बनाया। बिहार लोकसेवा आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, पिछड़ावर्ग आयोग, अतिपिछड़ा वर्ग, खाद्य आयोग और नागरिक परिषद में पद गढ़े और भरे गये।
अनुमान लगाया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के पूर्व और नियुक्तियां होंगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण नियुक्ति विधान परिषद में राज्यपाल कोटे की नियुक्ति मानी जा रही है।
बताया जा रहा है कि 23 फरवरी के बाद कभी भी आचार संहिता लागू हो जाएगी। इसके बाद किसी भी प्रकार की राजनीतिक नियुक्ति संभव नहीं होगी। उसकी नियुक्ति के लिए फिर चुनाव के बाद तक इंतजार करना होगा। इसलिए सरकार अगले एक सप्ताह में राजनीतिक पदों पर नियुक्ति कर लेना चाहती है। इसके लिए हड़बड़ी भी देखी जा रही है। रविवार को संकल्प रैली की अंतिम कड़ी भी पटना में समाप्त हो गयी। अब नीतीश कुमार का पूरा ध्यान लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों के चयन पर केंद्रित हो गया है।
अपनी राजनीतिक जमीन को सुदृढ़ करने के लिए नीतीश कुमार अपनी फौज को बढ़ाना चाहते हैं। इसलिए कम से कम 12 विधायकों को मंत्री बनाकर चुनावी फौज के हाथों में संसाधन सौंपना चाहते हैं। सूत्रों की मानें तो न कोई निर्दलीय मंत्री बनने वाला है और न कोई विधान पार्षद।
राजनीतिक नियुक्तियों में सत्ता और संगठन के बीच कड़ी के रूप काम करने वाले सासंद आरसीपी सिंह एक समानांतर और महत्वपूर्ण सत्ता के केंद्र बन गये हैं। संगठन के मामलों में भी उनकी काफी पकड़ है। अतिपिछड़ा सम्मेलनों के माध्यम से उन्होंने बड़ी जमात में पकड़ मजबूत की है। संकल्प रैलियों के माध्यम से भी कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का उन्होंने भरसक प्रयास किया। लोकसभा के चुनावी समर में न केवल सत्ता और संगठन, बल्कि नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच समन्वय का काम भी वहीं करेंगे। टिकट बंटवारे पर उनकी मुहर ही अंतिम मानी जाएगी।
लोकसभा चुनाव के ध्वनि के बीच विधान मंडल सत्र का सामना भी सरकार को करना है। विपक्षी दल भी पूरी तैयारी में हैं। हंगामा और बहिष्कार अब पंरपरा सी बनती जा रही है, इसके बावजूद विधायी कार्य भी पूरा किया जाता रहेगा।
चुनाव और बगावत के दबाव ने जदयू कार्यकर्ताओं के लिए संभावना के द्वार खोल दिए हैं। इसमें कई लोगों की किस्मत भी खुल रही है। लेकिन उसकी कीमत भी चुनाव में उन्हें चुकानी पड़ेगी।