जिन गलियों की चर्चा करने भर से आमलोगों को बदनाम होने का डर सताने लगता है,वहीं के कई युवकों ने उन गलियों से निकलकर तरक्की की एक नई इबारत लिखी है।
दीपक कुमार, सीतामढ़ी
दो-तीन साल पहले तक यहां के बाशिंदे कभी इज्जत की ज़िंदगी जीने की कल्पना तक नहीं कर सकते थे। अब रेड लाइट एरिया बोहा टोला सीतामढ़ी से निकलकर आरिफ व मोहसिन(बदला हुआ नाम) स्मार्टफोन,एसेसरीज व बैट्री की दुकान चलाते हैं।
दिलखुश,रुस्तम,परवेज,असलम,गुड् डू(सभी बदले हुए नाम) समेत कई युवक बैंकों में कलेक्शन एजेंट के तौर पर नियोजित हैं। कई युवा शृंगार प्रसाधनों की दुकानों में नौकरी कर रहे हैं। इतना ही नही,ये सभी उन लोगों की मदद भी कर रहे हैं जो नए ढंग से अपनी जिंदगी शुरू करना चाहते हैं।
हिकारत भरी नजर को मात:बोहा टोला में करीब 40 परिवार हैं। इसमें अधिकतर परिवारों की रोजी-रोटी देह व्यापार से चलती है। कोई स्कूल नहीं है। ऐसे में यहां के युवकों में रोजगार का कोई विकल्प नहीं था। बाहर निकलने पर लोग इन्हें हिकारत भरी नजर से देखते थे। वर्ष-2008 में नसीमा की संस्था ‘परचम’ यहां पहुंची। इसने बच्चों को शिक्षा देना शुरू किया तो नवयुवकों को व्यावसायिक प्रशिक्षण। हालांकि यह संस्था बाद में बंद हो गयी,लेकिन उस समय जो बदलाव की नींव पड़ी,उसी का परिणाम रहा कि लोग वहां से बाहर निकले और इसका सुखद परिणाम सामने आया।
आठ परिवारों में नयी जिंदगी:बोहा टोला के आठ परिवारों से सम्बद्ध 17 युवक सीतामढ़ी और आसपास के शहरों में नियोजित हैं। भूमिहीन होने की वजह से ये अब भी रेड लाइट एरिया में रहते हैं। लेकिन इन्होंने अपने घर की दीवार पर ‘यह पारिवारिक घर है’,इसमें ग्राहक दाखिल न हों अंकित करवा रखा है।
कर रहे मदद:जो युवा नौकरी पाने में सफल हुए हैं,वे अन्य की मदद कर रहे हैं। असलम(बदला हुआ नाम) ने बताया कि मुझे तो नौकरी पाने में काफी परेशानी हुई,लेकिन अन्य लोगों को कम दिक्कत हो इसलिए हमलोग एक-दूसरे की मदद करते हैं। किसी को भी कहीं भी वेकेंसी की जानकारी मिलती है तो उस जगह के लिए उपयुक्त युवक को नियोजित करवाने में जुट जाते हैं।
नगर परिषद सीतामढ़ी की पार्षद रानी देवी कहती हैं कि रेडलाइट एरिया के कुछ युवाओं ने रोजगार के सहारे नयी जिंदगी शुरू की है।इससे दूसरों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए।