बनारस में रहने वाले गौरव कपूर के विचारो से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं, पर उनके इस वैज्ञानिक विश्लेषण को इग्नोर करने का जोखिम नहीं उठा सकते. पढिए कि क्यों खतरों से भरी है बनारस से मोदी की सीट
गौरव कपूर, बनारस से
भारतीय जनता पार्टी यह आभास कराने में जुटी है कि वह बनारस से इस देश को दूसरा प्रधानमंत्री देने वाली है. पर आपको याद होगा कि लाल बहादुर शास्त्री ने एक ही चुनाव में बनारस के अलावा कहीं और स चुनाव नहीं लड़ा था.
और शायद यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने बनारस के अलावा वडोड्रा से भी चुनाव लड़ने की बुद्धिमानी की है. बनारसी लोग यह नहीं देख पा रहे हैं कि यहां कोई लहर है, कम से कम मैं तो यह नहीं देख पा रहा हूं कि बनारस मोदी के लिए सुरक्षित स्थान है.
इस बात में संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश का पूर्वी इलाका भाजपा के लिए महफूज ठिकाना रहा है. यह आरएसएस का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी रहा है. लेकिन जानने वालों को पता है कि बनारस में 15.5 लाख मतदाता हैं. और इनमें लगभग 4 लाख मुस्लिम मतदाता हैं.
2009 के चुनाव में लगभग 6.5 लाख मतदाताओं ने अपने वोट डाले थे.जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशी मुरली मनोहर जोशी को लगभग 2 लाख वोट मिले थे. बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मुख्तार अंसारी को 1.85 लाख वोट मिले थे. समाजवादी पार्टी के तत्कालीन उम्मीदवार अजय राय को 1.2 लाख वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस के राजेश मिश्र को 66 हजार वोट मिले थे.
बीते लोकसभा के आंकड़े बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के लिए बनारस की सीट थाली का निवाला जैसी नहीं है. बनारस वह सीट नहीं है जहां से जीतने वाले उम्मीदवार और हारने वाले उम्मीदवार के बीच का अंतर लाख वोट के करीब हो.
बीजेपी के समर्थकों का दावा है कि मोदी के नाम पर काफी वोटर उनका समर्थन कर सकते हैं. उनका तर्क है कि भाजपा ने अपना दल से गठजोड़ भी किया है और अपना दल के चलते मोदी को कुर्मियों का समर्थन मिल सकता है.
लेकिन इन सब बातों के बावजूद इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि मुख्तार अंसारी ने यहां से चुनाव न लड़डने का फैसला लिया है. उन्होंने किसी एक पार्टी को सपोर्ट करने का ऐलान भी नहीं किया है. लेकिन चुनावी मैदान से हट जाने के कारण इसका लाभ कांग्रेस को मिलने की उम्मीद है.
और दूसरी बात यह है कि जो वोट अरविंद केजरीवाल को मिलने वाले हैं वह दरअसल नरेंद्र मोदी के ही वोट हैं. इस संबंध में यह भी याद रखा जाना चाहिए कि मुरली मनोहर जोशी को जिस तरह से बनारस से टिकट नहीं दिया गया, उससे भाजपा के अनेक कार्यकर्तना नाराज हैं.
अगर मुख्तार अंसारी ने खुद को चुनाव से अलग नहीं किया होता तो भाजपा और आरएसएस के लोगों को इस बात की आसानी होती कि वे वोटरों को हिंदू बनाम मुस्लिम के रूप में विभाजित करने में कामयाब हो जाते. लेकिन मुख्तार के हटने के कारण ऐसी संभावना भी खत्म हो चुकी है.
मोदी के लिए इस बात की भी गुंजाइश है कि कुछ बनारसी उन्हें बाहरी उम्मीदवार समझ सकते हैं और कह सकते हैं कि वडोड्रास से जीतने के बाद वह बनारस से इस्तीफा दे सकते हैं. इस मायने में अजय राय को लाभ मिल सकता है. क्योंकि अजय राय इस क्षेत्र से पिछले पांच टर्म से विधायक रहे हैं और उनकी पकड़ भाजपा के कैडर वोट पर भी काफी है क्योंकि वह एक बार भाजपा के टिकट से भी विधायक रह चुके हैं.
अगर कांग्रेस के पारम्परिक वोट पर ध्यान दिया जाये , बसपा और सपा द्वारा कांग्रेस के पक्ष में गुप्त रूप से सहयोग करने की नीति पर ध्यान दिया जाय, अजय राय की अपनी लोकप्रियता और मुख्तार अंसारी का उनके पक्ष में हट जाने के मामले पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि नरेंद्र मोदी के लिए बनारस का चुनाव बड़ी चुनौती है. कहीं ऐसा न हो कि बनारस के गंगाघाट से नरेंद्र मोदी फिसल न जायें.
स्क्रॉल डॉट इन से साभार