कल्पना कीजिए कि यदि मानव तस्करी और बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे सऊदी अरब के राजनयिक को कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने देशवापसी की इजाज़त दे दी होती तो क्या होता. दक्षिणपंथी लोगों ने शायद दुनिया सर पर उठा लिया होता.
शिवम विज, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से
वो कहते कि कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए ऐसा किया. वो शायद ये भी कहने से गुरेज़ नहीं करते कि कांग्रेस ने इसके लिए पैसे खाए हैं. वो दोहरे मापदंड, छद्म धर्मनिरपेक्षता को लेकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे होते.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विभिन्न शाखाएं सऊदी दूतावास के बाहर झंडों के साथ नारे लगा रही होतीं. विनय कटियार और प्रवीण तोगड़िया सरीखे नेता तीखे भाषण दे रहे होते.
गूगल खंगाल देते
उनकी दलील हो सकती थी कि कांग्रेस सऊदी अरब के साथ बेहतर रिश्ते बनाना चाहती है. कांग्रेस का हर तर्क, हर दलील को ज़ोरदार तरीक़े से ख़ारिज कर दिया जाता. उदारवादी राजनीति के पैरोकारों को ट्विटर और सोशल मीडिया पर बुरा-भला कहा जा रहा होता.
अगर आपने उन्हें राजनयिक सुरक्षा के बारे में बताते तो, वे गूगल खंगालकर आपको उन देशों की फ़ेहरिस्त गिना देते जिन्होंने राजनयिक सुरक्षा के बावजूद राजनयिकों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की.
वो ये भी कह सकते थे कि अगर राजनयिक सुरक्षा का मतलब ये है कि उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता था तो कम से कम भारत सरकार को अपनी नाख़ुशी तो जतानी ही चाहिए थी. कड़ा संदेश देना चाहिए था. कम से कम राजनयिक को निष्कासित कर सकते थे और सऊदी सरकार को अपने राजनयिक को शांतिपूर्ण तरीक़े से घर जाने की छूट नहीं देते.
वो ये भी कह सकते थे कि कांग्रेस सरकार शरिया क़ानून वाली सऊदी सरकार से बेहतर रिश्ते चाहती है और उसे दो नेपाली नागरिकों को न्याय दिलाने की कोई चिंता नहीं है. नेपाल हिंदू बहुसंख्यक देश है और भला कांग्रेस हिंदुओं की परवाह कबसे करने लगी?
तो क्या यदि सऊदी ने बदले में एक भारतीय राजनयिक को निकाल दिया होता? इससे भारत की छवि पर कैसा असर पड़ता? क्या ये सबको पता नहीं होता कि ग़लती सऊदी अरब की है?
इटली का नेतृत्व
इस बात पर कि सऊदी अरब में 24 लाख भारतीय काम करते हैं, उनका पहला तर्क हो सकता था कि उनमें से अधिकांश मुसलमान होंगे, इसलिए कांग्रेस एक बार फिर मुस्लिम तुष्टीकरण कर रही है. क्योंकि भारतीय रियाद में छोटी-मोटी नौकरी करते हैं तो क्या ‘इटली के नेतृत्ववाली’ कांग्रेस सरकार को सऊदी राजनयिक को भारत में मेड के साथ बलात्कार करने देना चाहिए?
आपके सोशल मीडिया अकाउंट की टाइमलाइन पर कुछ ज़हरीले शब्द तैर रहे होते. अगर आप इसकी वजह सऊदी अरब से मिलने वाला तेल बताते तो उनका जवाब होता की तेल की क़ीमतें पारे की तरह गिरती जा रही हैं और आप हिंदू महिला से सऊदी व्यक्ति के बलात्कार को सही ठहराने के लिए तेल की तर्क दे रहे हैं.
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अगर इसमें दख़ल देकर सऊदी राजनयिक को देश से जाने दिया होता तो आप कहते कि ये आदमी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है या राष्ट्रीय असुरक्षा सलाहकार?
अगर कोई ये तर्क देता कि भारत सऊदी अरब को इसलिए नाराज़ नहीं कर सकता क्योंकि वह पैसों से पाकिस्तान में जिहादियों की मदद कर सकता है. इस पर उनका जवाब ये हो सकता था कि आप क्या चाहते हैं कि कोई भारत को ब्लैकमेल करे? इसीलिए हम चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनें. भारत को एक मज़बूत प्रधानमंत्री की ज़रूरत है जो दुनिया को ये बता सके कि अब आप भारत को मूर्ख नहीं बना सकते.
लेकिन, अफ़सोस कि ये सब कुछ नरेंद्र मोदी के शासन में हो रहा है और दक्षिणपंथी कमोबेश चुप्पी साधे हुए हैं. जो बोल भी रहे हैं तो सोशल मीडिया पर किसी तरह बचाव कर रहे हैं.
एक यूज़र ने ट्वीट किया, “राजनयिक सुरक्षा पर कांग्रेसी और आप कार्यकर्ता बोलना शुरू करें, उससे पहले याद रखें…एंडरसन और भोपाल.”
बेशक, ये हमेशा से ही कांग्रेस का ही क़सूर रहा है. अगर कांग्रेसी सरकार ने वारेन एंडरसन को 31 साल पहले भोपाल से नहीं जाने दिया होता तो मोदी जी भी सऊदी राजनयिक को थोड़े ही जाने देते.
समस्या ये नहीं है कि सऊदी राजनयिक मामले में मोदी सरकार ख़ामोश रही, असल समस्या ये है कि इस मामले में मीडिया भी मोदी के सामने ख़ामोश रही.