मृदुभावों के चर्चित कवि विजय अमरेश बहुआयामी व्यक्तित्व के साहित्यकार और संस्कृति–कर्मी थे। उनके साहित्य और संस्कृति–कर्म के अनेक आयाम थे। वे एक संवेदनशील कवि, प्रतिभावान नाटककार, प्रभावशाली उद्घोषक और निष्ठावान संस्कृति–कर्मी थे। उनके हृदय में निरंतर कुछ नवीन और बड़ा करने की अग्नि प्रज्वलित रहती थी। उनकी आँखों में वह चमक और दृष्टि देखी जा सकती थी।
यह बातें आज यहाँ कीर्ति–शेष कवि अमरेश की जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, अमरेश जी साहित्य और कला–संस्कृति के लिए सर्वतोभावेन समर्पित विनयशील पुरुष थे। उनका सान्निध्य किसी सत्संग की भाँति आनंद–प्रद हुआ करता था।
इस अवसर पर, उनकी स्मृति में प्रकाशित स्मृति–ग्रंथ‘स्मृत्यंजलि‘का लोकार्पण करते हुए,पटना उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि, अमरेश जी की रचनाएं जीवन के रहस्यों की पड़ताल करती हैं। वे एक चिंतक कवि थे। उनमें दर्शन और अध्यात्म के तत्त्व भी मिलते हैं।
समारोह के मुख्य अतिथि तथा पाटलिपुत्र विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो गुलाबचंद्र राम जायसवाल ने कहा कि, बिहार की रत्न–गर्भा भूमि ने अनेक रत्नों को जन्म दिया है। उनमें विजय अमरेश भी एक नाम है।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने श्री अमरेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। डा पाण्डेय ने कहा कि, अमरेश जी कला और साहित्य के प्रायः सभी विधाओं में पारंगत थे। यहाँ तक कि फ़िल्मों और दूर दर्शन के धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन में भी सिद्ध–हस्त थे।
पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा, दूरदर्शन,पटना की केंद्र–निदेशक डा रत्ना पुरकायस्था, अमरेश जी की पत्नी सुभद्रा शुभम और पुत्री स्वधा मंगलम, डा सविता शर्मा, तारा सिन्हा, डा शांति ओझा, भगवती प्रसाद द्विवेदी, सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा शहनाज़ फ़ातमी, डा अशोक प्रियदर्शी, आनंदी प्रसाद बादल, डा विनोद कुमार मंगलम तथा श्रीकांत सत्यदर्शी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन में अपनी ग़ज़ल का पाठ करते हुए, वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘ने कहा कि, “थरथराई ठंढ से यह देह गरमाई अभी/खिलखिलाई धूप ने क्या फ़रहरी लाई अभी/ इस क़दर पछिया ने मारा, हाड़ छेदे सनसनी/ वरफ से ऐसा नहाया कंपकपी है, कनकनी/आग जो मिल जाए तो हो जाए भरपाई अभी”। डा शंकर प्रसाद का कहना था कि, “शायद आ जाएगी फूलों को हँसी अबके बरस/शायद शबनम भी मनायगी ख़ुशी अबके बरस“। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पांडेय ‘प्रकाश‘ने आज की राजनीति पर तंज कसते हुए कहा कि, “राजनीति पर जब कविता के तीर चलते हैं/बड़े–बड़े वीर बेंग की तरह उछालते हैं/कमर की तरह लचकती कलाम भला अंगार किस तरह लिखे?मुड़ीं मूँछों पर प्रकाश ताव किस तरह खिले?”
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह, वरिष्ठ कवयित्री कालिन्दी त्रिवेदी, विजय गुंजन, डा लक्ष्मी सिंह, बच्चा ठाकुर,कवि सुनील कुमार दूबे,रमेश कँवल, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, राज कुमार प्रेमी, ओम् प्रकाश पांडेय ‘प्रकाश‘,जय प्रकाश पुजारी,शुभचंद्र सिन्हा,चंदा मिश्र, प्रणव पराग, डा सुधा सिन्हा,डा विनय कुमार विष्णुपुरी,पूनम सिन्हा श्रेयसी,मधु रानी, समीर परिमल, डा विद्या चौधरी, श्रीकांत व्यास, रमेश मिश्र,लता प्रासर, ममता भारती, जनार्दन मिश्र, शमा कौसर,अर्चना सिन्हा,निशिकांत सिन्हा,कमलेश मिश्र, अर्जुन प्रसाद सिंह, सच्चिदानंद सिन्हा, सूरजदेव सिंह, प्रकाश महतो वियोगी, कुमारी मेनका तथा अनिल कुमार ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। रेखा झा की वाणी–वंदना से आरंभ हुए इस उत्सव का समापन कृष्ण रंजन सिंह के धन्यवाद–ज्ञापन के साथ हुआ। मंच का संचालन तथा योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।