बांका संसदीय क्षेत्र की राजनीतिक जमीन समाजवादी विचारों से सिंचित रही है। हालांकि इस सीट से 1967 में भारतीय जनसंघ के बीएस शर्मा भी निर्वाचित हो चुके हैं। 1957 में अस्तित्व में आये इस लोकसभा सीट से समाजवादी नेता मधु लिमये दो बार निर्वाचित हो चुके थे। बांका के सांसद रहे चंद्रशेखर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री भी बने थे।
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वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 26

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सांसद — जयप्रकाश यादव — राजद — यादव
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
सुल्तानगंज — सुबोध राय — जदयू — धानुक
अमरपुर — जनार्दन मांझी —जदयू — कुशवाहा
धौरैया — मनीष कुमार — जदयू — पासी
बांका — रामनारायण मंडल — भाजपा — तेली
कटोरिया — स्विटी सीमा हेम्ब्रम — राजद — आदिवासी
बेलहर — गिरधारी यादव — जदयू — यादव
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2014 में वोट का गणित
जय प्रकाश यादव — राजद — यादव— 285150 (32 प्रतिशत)
पुतुल सिंह — भाजपा — राजपूत — 275006 (31 प्रतिशत)
संजय कुमार — भाकपा — यादव — 220708 (25 प्रतिशत)
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सामाजिक बनावट
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बांका लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटर यादव जाति के हैं, जबकि सवर्ण जाति की कुल आबादी यादव जाति के बराबर होगी। इस संसदीय क्षेत्र में अतिपिछड़ी जाति के वोटरों की संख्या भी काफी है। इस क्षेत्र में चुनाव परिणाम बहुत हद तक यादव जाति को लेकर गोलबंदी या खिलाफ पर निर्भर करता है।
दिग्विजय सिंह फैक्टर
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बांका लोकसभा क्षेत्र में दिग्विजय सिंह फैक्टर की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। दिग्विजय सिंह तीन बार लोकसभा के‍ लिए निर्वाचित थे। वे नीतीश कुमार के काफी निकट थे और समता पार्टी के समय से उनके साथ थे। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने उन्‍हें टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय मैदान में उतर गये और मैदान मार ली। उसके बाद उन्होंने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नीतीश कुमार के खिलाफ उन्होंने पटना के गांधी मैदान में किसान महापंचायत का आयोजन किया था। इसमें मुख्यमंत्री के विश्वस्त ललन सिंह भी नीतीश के खिलाफ खड़े नजर आये। बाद में दिग्विजय सिंह का देहांत हो गया और उसके साथ नीतीश के खिलाफ लामबंदी भी धराशायी हो गयी। ललन सिंह वापस नीतीश के पक्ष में खड़े हो गये।
कौन-कौन हैं दावेदार
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बांका संसदीय क्षेत्र से महागठबंधन के निर्विवाद उम्मीदवार जयप्रकाश नारायण यादव ही होंगे। वह इस सीट से पहली बार निर्वाचित हुए हैं। इसके पहले वे 2004 में मुंगेर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। उस समय यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री बने थे। इस सीट को लेकर एनडीए में पेंच फंस सकता है। इस सीट पर पिछले चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार पुतुल सिंह थी। 2009 में इस सीट से दिग्विजय सिंह निर्दलीय निर्वाचित हुए थे और उनके देहांत के बाद उनकी पत्नी पुतुल सिंह उपचुनाव में 2010 में निर्दलीय सांसद के रूप में निर्वाचित हुई थीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया, लेकिन भाजपा उम्मीदवार के रूप में वे चुनाव हार गयीं। सीट बंटवारे में यह सीट भाजपा के कोटे में जाति है तो पुतुल सिंह को फिर उम्मीदवार बनाया जा सकता है। लेकिन यह जदयू के खाते में जाती है तो पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। 2014 में जीतनराम मांझी के साथ मिलकर नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने वाले नरेंद्र सिंह अपनी विधान परिषद की सदस्यता भी गवां चुके थे। बाद में वे फिर जदयू में शामिल हो गये हैं। बांका और जमुई की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ रही है। हालांकि दोनों दलों में कई अन्य दावेदार भी हैं, लेकिन कोई दावेदारी के लिए सामने नहीं आ रहे हैं।

By Editor


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