लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद राजद के पास एक ऐसा विकल्प है जिस पर अगर वह अमल करे तो विरोधी पार्टियों की रणनीति पर पानी फिर सकता है.
विनायक विजेता
चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद को रांची के बिरसा मुडा केन्द्रीय कारागार में भेज दिए जाने के बाद अब यह सवाल खडा हो गया है कि क्या लालू और उनकी पार्टी का जनाधार बरकरार रह पाएगा?
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लालू प्रसाद के लिए वर्तमान में जमानत पर बाहर निकलने से पहले नेतृत्व संकट का समाधान खोजना होगा. इस संकट की स्थिति में अगर लालू प्रसाद परिवारवाद का रास्ता तलाशते हैं तो आने वाला समय राजद के लिए मुश्किल भरा होगा और पार्टी सिर्फ एक वर्ग की पार्टी बनकर रह सकती है.
रघुवंश हो सकते हैं अच्छा विकल्प
पिछले दिनों लालू प्रसाद ने सवर्ण समुदाय से जिस तरह अपनी पिछली गलतियों के लिए माफी मांगी और इस समुदाय को आकर्षित किया उसे बरकरार रखने के लिए अगर वह रघुवंश प्रसाद सिंह को पार्टी की कमान सौंप देते हैं तो इसका एक अच्छा मैसेज बिहार में जा सकता है. संभव है कि रघुवंश रजद के तरकश का सफल तीर साबित हो सकते हैं.
अगर लालू प्रसाद ऐसा नहीं करते हैं तो नीतीश कुमार से खार खाए वैसे सवर्ण मतदाता जो लालू की तरफ देख रहे थे का रुझान बीजेपी की ओर जा सकता है. यूं भी सुलझे, र्निविवाद और काफी अनुभवी रघुवंश प्रसाद सिंह को हर जाति के लोगों का समर्थन है। उनके नाम पर पार्टी में कोई विवाद की भी संभावना नहीं है.
हालांकि अभी लालू प्रसाद को सजा की मियाद नहीं सुनाई गई पर एक अनुमान के अनुसार उन्हें चार से छह वर्ष के बीच की सजा मिल सकती है. ऐसे में राजद के लिए नेतृत्व संकट सबसे बडी चुनौती बन सकता है. पर अगर लालू परिवारवाद के रास्ते पर चलते हुए अपनी पत्नी राबडी देवी या पुत्र तेजस्वी को नेतृत्व की कमान सौंपते हैं तो संभव है कि पार्टी के कुछ वरिष्ट नेता ही इसे नहीं पचा पाएं और पार्टी टूट के कगार पर पहुंच जाए.
जबरदस्त सहानुभूति
लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद हांलांकि फिलवक्त तो पार्टी की सेहत पर कोई असर नही दिख रहा बल्कि लालू प्रसाद के लिए सहानुभूति की ही लहर दिख रही है और यह लहर सोमवार को रांची की अदालत के बाहर भी देखने को मिला जहां व्यापक सुरक्षा बंदोबस्त और सांसद रामकृपाल यादव के बार-बार मना करने के बावजूद भी हजारों राजद समर्थक इक्कठे हो गए और लालू प्रसाद के समर्थन में कोर्ट परिसर के बाहर जमकर नारेबाजी की.
लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद सांसद रामकृपाल यादव व जगदीशपुर के विधायक दिनेश कुमार सिंह तो फूट-फुटकर रोते नजर आए. इसे वक्त ही कहा जाएगा कि जिस लालू प्रसाद ने कभी देश में दो-दो प्रधानमंत्री बनाने में अपनी अहम भूमिका निभायी वह आज सलाखों के पीछे हैं.
राजद के जनाधार पर नीतीश की नजर
बताया जाता है कि नीतीश कुमार और भाजपा नेताओं की नजर भी राजद के नेतृत्व संकट पर जमी है और लालू प्रसाद कोई गलती करते हैं तो दोनों के लिए यह एक मुद्दा बन जाएगा. इधर लालू प्रसाद जेल गए अन्य आरोपितों के सामने समस्या यह है कि वह रांची हाइकोर्ट में जल्द जमानत याचिका भी नहीं दायर कर सकते। सीबीआई अदालत ने लालू प्रसाद व अन्य की सजा अवधि पर तीन अक्टूबर को फैसला सुनाएगी, जबकि रांची हाईकोर्ट में 4 अक्टूबर के पुर्वाहन तक कार्य होने के बाद 17 अक्टूबर तक दशहरा की छुट्टी के लिए बंद हो जाएगा।